
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले लालू परिवार में राजनीतिक और पारिवारिक असहमति सुर्खियों में है। तेज प्रताप यादव के बाद अब रोहिणी आचार्या की नाराजगी पार्टी और परिवार के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। रोहिणी ने सोशल मीडिया पर नाराजगी जताई, परिवार और पार्टी के अकाउंट्स को अनफॉलो किया और सिंगापूर लौट गईं और अपने फैसले से साफ कर दिया कि परिवार के भीतर मतभेद अब खुले रूप में बाहर आ चुके हैं।
रोहिणी की नाराजगी का मुख्य कारण तेजस्वी यादव के करीबी सलाहकार माने जाने वाले संजय यादव हैं। राघोपुर और अन्य विधानसभा क्षेत्रों में संजय यादव की बढ़ती भूमिका और पार्टी निर्णयों में उनकी बढ़ती पकड़ ने रोहिणी को असहज कर दिया। तेज प्रताप पहले ही सार्वजनिक रूप से इस पर असंतोष जता चुके हैं। परिवार के भीतर कई वरिष्ठ नेताओं ने भी संजय यादव पर पार्टी को हाइजैक करने का आरोप लगाया है, जिससे परिवार के सदस्य खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
रोहिणी ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए खुलकर अपनी भावनाएं जताईं। उन्होंने खुद को ‘जिम्मेदार बहन और बेटी’ बताया और अपने आत्मसम्मान का जिक्र किया। इसके बाद उन्होंने राजद और लालू परिवार के सभी सोशल मीडिया अकाउंट्स को अनफॉलो कर दिया और अपना अकाउंट प्राइवेट कर लिया। इस कदम ने पार्टी और राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी और अंदरूनी असहमति सार्वजनिक हो गई।
मामला तब और गंभीर हो गया जब तेजस्वी की शिकायत पर लालू यादव ने तेजस्वी को समझाने की बजाय रोहिणी को ही समझाना शुरू किया। हल्की बहस के बाद, पिता के जीवन को बचाने के लिए अपनी किडनी देने वाली रोहिणी आहत हो गईं। उन्होंने भावनाओं में अपने पिता को समझाने की कोशिश की, लेकिन मजबूर होकर सोशल मीडिया पर रीपोस्ट करते हुए पिछड़ों को ‘फ्रंट सीट’ पर बैठाने का संदेश साझा किया।
रोहिणी ने स्पष्ट किया कि उनका फोकस किसी राजनीतिक पद पर नहीं बल्कि आत्मसम्मान पर है। परिवार के फैसलों में उनकी अनदेखी और सम्मान की कमी ने उन्हें आरजेडी से मोहभंग करने के लिए मजबूर किया। उनका कदम दर्शाता है कि लालू परिवार की राजनीति में पारिवारिक सम्मान और निर्णयों का महत्व मतदाताओं और कार्यकर्ताओं की नजर में भी अहम है।
परिवार की कलह राजद के नेतृत्व और संगठनात्मक मजबूती पर असर डाल सकती है। यादव वोटबैंक, महिला और युवा वोटरों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। विपक्षी दल इस विवाद का फायदा उठा सकते हैं और सवाल उठा सकते हैं कि “घर संभलता नहीं, बिहार क्या संभालेगा?” इससे चुनाव प्रचार और कार्यकर्ता उत्साह पर भी असर पड़ सकता है।
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