क्या तेज प्रताप की वजह से नहीं बने तेजस्वी अध्यक्ष? लालू ने 2025 चुनाव से पहले फिर थामी RJD की बागडोर

Published : Jun 23, 2025, 07:15 PM ISTUpdated : Jun 23, 2025, 07:19 PM IST
Lalu Prasad Yadav

सार

Bihar chunav: लालू यादव ने RJD अध्यक्ष पद के लिए फिर नामांकन भरा है। तेजस्वी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, फिर भी लालू ने पार्टी की कमान उन्हें क्यों नहीं सौंपी? क्या चुनावी रणनीति है या पारिवारिक उठापटक का असर?

Bihar Election 2025: राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव पिछले 28 सालों से अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और एक बार फिर सोमवार को उन्होंने अपनी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए नामांकन दाखिल किया है। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले इस समय आरजेडी में संगठन चुनाव चल रहे हैं और इसी काम में लालू ने एक बार फिर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल किया है।

लालू पार्टी की कमान तेजस्वी को क्यों नहीं सौंप रहे हैं?

लालू प्रसाद के खिलाफ किसी ने नामांकन दाखिल नहीं किया है, जिससे एक बार फिर साफ हो गया है कि अगले तीन सालों तक पार्टी का नेतृत्व और बागडोर लालू प्रसाद के हाथों में ही रहेगी और बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी का नेतृत्व लालू प्रसाद ही करेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि जब लालू प्रसाद ने अपने बेटे को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया है तो फिर पार्टी की बागडोर अपने बेटे को क्यों नहीं सौंप रहे हैं? सवाल उठता है कि जब लालू प्रसाद की तबीयत ठीक नहीं है और वे कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं, तो लालू पार्टी की कमान तेजस्वी को क्यों नहीं सौंप रहे हैं?

गौरतलब है कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा और जनता दल यूनाइटेड ने लालू प्रसाद के भ्रष्टाचार और चारा घोटाले में दोषी करार दिए जाने और जेल जाने का मुद्दा उठाया था, जिसके बाद तेजस्वी यादव ने चुनावी रणनीति बदलते हुए पूरे चुनाव में लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के पोस्टर के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी।

2020 में हटाई गई थी लालू और राबड़ी की तस्वीर

2020 के चुनाव के दौरान विपक्षी दल लगातार लालू प्रसाद के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठा रहे थे। उस समय तेजस्वी पार्टी के पोस्टर और बैनर में लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की तस्वीर को प्रमुखता से लगाते थे, लेकिन जब तक तेजस्वी को यह अहसास हुआ कि लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की तस्वीर लगाने से पार्टी को नुकसान हो रहा है और उनकी साफ-सुथरी छवि खराब हो रही है, तब तक उन्होंने रणनीति बदल दी। इसके बाद उन्होंने पूरे चुनाव में अपने पिता और मां की तस्वीर के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगा दी। तेजस्वी यादव को उम्मीद रही होगी कि चुनावी रणनीति बदलने से उन्हें कुछ फायदा मिलेगा लेकिन इसका ज्यादा फायदा होता नहीं दिखा और उनकी पार्टी सत्ता से दूर रह गई।

लालू के हाथ में है पार्टी की बागडोर

पांच साल बाद एक बार फिर बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं तो जाहिर है कि तेजस्वी यादव पहले से ज्यादा मजबूत स्थिति में हैं। लालू प्रसाद ने पार्टी के भीतर कोई भी बड़ा फैसला लेने के लिए अपने बाद तेजस्वी को ही अधिकृत किया है, लेकिन उन्होंने अभी तक पार्टी की बागडोर पूरी तरह तेजस्वी को नहीं सौंपी है और न ही उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है।

लालू को दरकिनार करने से चुनावी नुकसान का खतरा

ऐसे में चुनाव से पहले पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में कोई भी बड़ा बदलाव राजद के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है और शायद इसी वजह से लालू प्रसाद एक बार फिर चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करते नजर आएंगे। तेजस्वी यादव भले ही मुख्यमंत्री का चेहरा हों और अगर महागठबंधन चुनाव जीतता है तो वे मुख्यमंत्री बन सकते हैं, लेकिन लालू परिवार को इस बात का अहसास है कि अगर चुनाव से पहले लालू प्रसाद को पार्टी में दरकिनार कर दिया जाता है और नेतृत्व परिवर्तन किया जाता है तो इससे आरजेडी के वोट बैंक खासकर मुस्लिम और यादव समुदाय में बहुत गलत संदेश जाएगा। यह भी संभव है कि इससे पार्टी को नुकसान भी हो सकता है। यही वजह है कि लालू ने सोमवार को एक बार फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए अपना नामांकन दाखिल किया है।

तेज प्रताप वीडियो कांड

दूसरी वजह यह है कि इस समय तेज प्रताप को लेकर लालू प्रसाद परिवार में तूफान मचा हुआ है और तेज प्रताप- अनुष्का यादव प्रकरण सामने आने के बाद लालू प्रसाद ने तेज प्रताप को न सिर्फ पार्टी से निकाला है बल्कि परिवार से भी निकाल दिया है। ऐसे में लालू परिवार के अंदर तेजस्वी और तेजप्रताप के बीच सत्ता संघर्ष की खबरें समय-समय पर आती रहती हैं, लेकिन तेजप्रताप के विवाद ने शायद एक बार फिर लालू को पार्टी का नेतृत्व जारी रखने और राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर बने रहने के लिए मजबूर कर दिया है, ताकि पार्टी पर उनका पूरा नियंत्रण रहे और किसी तरह की फूट न हो।

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