
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। ऐसे में चुनावी समीकरणों पर नज़र डालें तो राजधानी पटना से लेकर सारण और सीवान जैसे महत्वपूर्ण इलाकों में महागठबंधन की मजबूत पकड़ एनडीए के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है। पिछले चुनावों के आंकड़े साफ संकेत दे रहे हैं कि यदि विपक्ष अपनी रणनीति को बरकरार रखता है, तो भाजपा और जदयू के नेतृत्व वाला गठबंधन यहाँ अपना प्रभाव स्थापित करने में कठिनाई महसूस कर सकता है।
राजधानी पटना हमेशा से बिहार की राजनीति का केंद्र रहा है। यहाँ की कुल 14 विधानसभा सीटों में से महागठबंधन ने 9 पर कब्जा जमाया था, जो लगभग 64 प्रतिशत है। वहीं एनडीए को केवल 5 सीटों पर संतोष करना पड़ा। यह आंकड़ा बताता है कि शहरी मतदाता विपक्ष की तरफ झुका हुआ है। तेजस्वी यादव की लगातार यात्राएं, छात्र-युवा संगठनों से संवाद और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर जोर देने से महागठबंधन की पकड़ मजबूत हुई है।
सारण प्रमंडल की कुल 24 सीटों में से 15 सीटें महागठबंधन के खाते में गई थीं, यानी 62.5 प्रतिशत। एनडीए को मात्र 9 सीटें मिलीं। यहाँ की ग्रामीण और अर्ध-शहरी आबादी में स्थानीय मुद्दों, कृषि संकट, बाढ़, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी जैसे सवालों को लेकर महागठबंधन का समर्थन बढ़ा है। स्थानीय नेतृत्व का सक्रिय होना भी विपक्ष की बढ़त का कारण है।
सीवान जिले की 8 सीटों में से 6 सीटों पर विपक्ष का कब्जा रहा, यानी 75 प्रतिशत, जबकि एनडीए केवल 2 सीटों तक सीमित रह गया। सीवान के मतदाता अपराध, प्रशासनिक विफलता और विकास के मुद्दों पर नाराज दिखे। महागठबंधन ने इन नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश की और इसमें उन्हें कामयाबी भी मिली।
जानकार बताते हैं कि इस चुनाव में एनडीए अपनी रणनीति के तहत महिलाओं, युवाओं और अतिपिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को टारगेट कर रही है, इसलिए उनसे संवाद करने के लिए जमीनी स्तर पर टीम भेजी गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार महिला सशक्तिकरण, युवा रोजगार और डोमिसाइल नीति जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन जनसभाओं और यात्राओं के माध्यम से अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। पार्टी का मानना है कि बेरोजगारी, बाढ़ राहत, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर एनडीए विफल रही है, जिससे विपक्ष को बढ़त मिली है। स्थानीय नेताओं की सक्रियता भी उनके पक्ष में जा रही है।
पटना, सारण और सीवान की कुल 46 सीटों में महागठबंधन ने 30 सीटों (65%) पर जीत हासिल की थी जबकि एनडीए को 16 सीटें (35%) मिलीं। यदि यही ट्रेंड 2025 में भी बना रहा तो एनडीए के लिए राज्य में बहुमत हासिल करना बेहद मुश्किल हो सकता है। जातीय समीकरण, स्थानीय नेतृत्व, उम्मीदवारों का चयन और क्षेत्रीय मुद्दे आगामी चुनाव में निर्णायक साबित होंगे। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि एनडीए को अपनी हार की वजहों का गहराई से अध्ययन कर नई रणनीति बनानी होगी। वहीं विपक्ष भी इस अवसर का लाभ उठाकर अपने आधार को और मजबूत करने में जुटा है।
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