
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नजदीक आने के साथ ही सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे भी तेज़ी से गरमाए हैं। ऐसे में मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने निषाद समाज के आरक्षण को चुनावी एजेंडे में प्रमुखता से रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आज बिहार के दौरे से पहले वीआईपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता देव ज्योति ने यह साफ सवाल उठाया कि आखिर बिहार के निषादों को आरक्षण कब मिलेगा?
निषाद समाज को बिहार राजनीतिक परिदृश्य में एक अहम सामाजिक समूह माना जाता है। बिहार में करीब 5.5 प्रतिशत आबादी वाले इस वर्ग की आवाज़ कई दशकों से आरक्षण की मांग में लगातार जोर पकड़ती जा रही है। देव ज्योति ने प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी सरकार को चुनौती दी कि अन्य राज्यों में निषादों को आरक्षण दिया जा चुका है, लेकिन बिहार के निषाद आज भी इस संवैधानिक अधिकार के लिए संघर्षरत हैं।
वीआईपी के प्रवक्ता देव ज्योति ने बड़ा सवाल पूछा, “प्रधानमंत्री जी आप बिहार आएं स्वागत है, लेकिन निषादों को आरक्षण कब देंगे?” उन्होंने कहा कि यह सौतेलेपन का मामला है कि इतने वर्षों से निषाद आरक्षण के लिए आवाज़ उठा रहे हैं, लेकिन समाधान नहीं निकल रहा। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि निषाद समाज इस बार एनडीए को चुनाव में इसका जवाब देंगे और उन्हें सत्ता से दूर कर देंगे।
2020 के विधानसभा चुनाव में निषादों की भूमिका साफ नजर आई जब विकासशील इंसान पार्टी (VIP) ने चार सीटें जीत कर अपनी पकड़ दिखाई। मुकेश सहनी की अध्यक्षता में वीआईपी ने अब महागठबंधन का हिस्सा बन कर निषाद वोट बैंक को मजबूत करने का प्रयास किया है। इसका असर 2025 के चुनाव में निर्णायक हो सकता है क्योंकि बिहार के कई जिलों में निषाद समुदाय की संख्या अधिक होने के साथ-साथ वो सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग भी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज बिहार के सीमांचल क्षेत्र के पूर्णिया जिले का दौरा कर रहे हैं। इस दौरान करीब 40 हजार करोड़ की विकास परियोजनाओं की घोषणा और उद्घाटन होगा। भाजपा की कोशिश है कि इस विकास की सौगात के जरिए सीमांचल के मतदाताओं को लुभाया जाए। दूसरी ओर वीआईपी ने आरक्षण के मामले को केंद्रित कर चुनावी तापमान बढ़ा दिया है।
बिहार में निषाद समुदाय को कई वर्षों से राजनीतिक टकरावों के बीच सामूहिक पहचान बनाने का संघर्ष करना पड़ा है। यह समाज अब राजनीतिक ताकत बन चुकी है और उसका वोट बैंक किसी भी गठबंधन के लिए निर्णायक साबित होता है। इसके चलते निषाद आरक्षण पर राजनीतिक दलों का दावा और उनकी प्रतिक्रिया चुनाव की दिशा तय करती है।
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