
नालंदा। होली पर लोगों को अबीर, गुलाल याद आते हैं। इस त्यौहार पर लोग जमकर रंगों की होली खेलते हैं। आम तौर पर होली के दिन गांवों में फगुआ गया जाता है, लोग उसके गीतों को इंज्वाय करते हैं। पर नालंदा में पांच गांव ऐसे भी हैं, जहां परम्परागत रुप से होली के अवसर पर यह सब नहीं किया जाता है। इस दौरान लोग भक्ति में लीन रहते हैं। मांस और मंदिरा का सेवन वर्जित होता है। होली के दिन घरों के चूल्हे नहीं जलते हैं, लोग बासी भोजन का सेवन करते हैं।
ये हैं ऐसे पांच गांव
उन गांवों में जहां होली मनाने की परम्परा थोड़ा हटकर है। वे गांव जिला मुख्यालय बिहार शरीफ से सटे ही हैं। उनमें पतुआना, ढीबरापुर, बासवन बिगहा, नकटपुरा और डेढ़धारा गांव शामिल हैं। हर साल होलिकादहन की शाम से ही उन गांवों में 24 घंटे का अखंड-कीर्तन होता है। बताया जाता है कि होली मनाने की यह परम्परा 51 वर्षों से चल रही है। स्थानीय निवासी मौजूदा समय में भी इस परम्परा को पूरी श्रद्धा के साथ निभाते हैं। होली के अगले दिन गांव के लोग होली मनाते हैं। इस तरह यह परम्परा भी निभ रही है और ग्रामीण होली का उत्सव भी मनाते हैं।
परम्परा शुरु होने की ये है वजह
इस परम्परा के शुरु होने की वजह भी बहुत ही दिलचस्प है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि पहले के समय में होली के पर्व पर अक्सर गांवों में विवाद हुआ करता था। इस वजह से होली के त्यौहार के मौके पर रंग में भंग पड़ जाता था। एक सिद्ध पुरुष संत बाबा ने इस मौके पर लड़ाई-झगड़ों से छुटकारा पाने की राह दिखाई और गांव वालों को ईश्वर भक्ति की राह पर चलने को कहा। उनके आदेश को गांव वालों ने माना और तभी से होली पर अखंड कीर्तन की नयी परम्परा की शुरुआत हुई।
कैसे मनाते हैं होली?
अखंड कीर्तन चलता रहता है। ग्रामीण, कीर्तन शुरु होने से पहले से ही पकवान वगैरह तैयार करके रखते हैं। अखंड कीर्तन समाप्ति के पहले घरों में चूल्हे न जलाए जाने की पम्परा है। इस दौरान लोग नमक भी नहीं खाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि कीर्तन के दौरान घरों के चूल्हों से धुआं नहीं निकलना चाहिए। अखंड कीर्तन समाप्ति के बाद ग्रामीण अगले दिन होली खेलते हैं। उधर, पूरा देश होली खेल रहा होता है। पर इन पांच गांवो के लिए कीर्तन कर रहे होते हैं।
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