पटना (बिहार). जातीय जनगणना मामले में नीतीश सरकार को हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। पटना हाईकोर्ट ने जनवरी 2023 में शुरु हुई जातिगत जनगणना पर तत्काल प्रभाव से अंतरिम रोक लगा दी है। साथ ही डाटा को भी संरक्षित रखने का आदेश दिया गया है। मामले की अगली सुनवाई 3 जुलाई को होगी। गुरुवार को पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच ने यह आदेश दिया।
हाईकोर्ट ने डेटा सुरक्षित रखने की बात कही
चीफ जस्टिस बी. चंद्रन की बेंच ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और कहा कि जातीय जनगणना को अब तक कलेक्ट डाटा नष्ट न किया जाए। यह डाटा गुप्त और सुरक्षित रखा जाए। किसी भी स्थिति में यह डाटा सार्वजनिक भी नहीं होना चाहिए। अब जातीय जनगणना पर आगे क्या होगा, 3 जुलाई को कोर्ट में सुनवाई के बाद ही इसकी तस्वीर साफ हो सकेगी। पर, इसको लेकर अब सियासी प्रतिक्रया भी आने लगी हैं।
रिपोर्ट्स के अनुसार, सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि सभी की सहमति से जातीय जनगणना कराई जा रही थी। इसके लिए केंद्र सरकार से अनुमति भी ली गई थी। पूरे देश में जातीय जनगणना कराने का प्रस्ताव भी पेश किया गया था। केंद्र सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया तो हम लोगों ने जातीय गणना के साथ आर्थिक सर्वे कराने का भी फैसला लिया।
राजनीति से प्रेरित है यह जनगणना
सरकार की तरफ से एडवोकेट जनरल पीके शाही ने गणना के बारे में कोर्ट की सुनवाई में वंचित समाज और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का डेटा नहीं होने की बात कही। साथ ही उन्होंने बताया कि यह जातिगत गणना नहीं बल्कि आर्थिक सर्वेक्षण भी है। वहीं महाधिवक्ता की दलील सुनने के बाद याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार ने इसे राजनीति से प्रेरित बताया साथ ही यह सब राजनीति के लिए सब हो रहा है। हालांकि उनकी बात का महाक्षिवक्ता ने जवाब दिया कि हर सरकार राजनीति के तहत कार्य करती है। हर राज्य और केंद्र की सरकार वोट बैंक के लिए ही योजना बनाती है। पटना चीफ जस्टिस ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला अपने पास सुरक्षित रख लिया था।
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