जदयू में उपेंद्र कुशवाहा के रूप में बड़ा विद्रोह, क्या और विधायक भी हैं खेमा बदलने को तैयार?

जदयू में पहला बड़ा विद्रोह उपेंद्र कुशवाहा के रुप में हुआ। अब उनका दावा है कि नीतीश कुमार की पार्टी के कई एमएलए और एमएलसी उनके संपर्क मे हैं, जल्दी ही वह उनके नाम का खुलासा करेंगे

पटना। जदयू में पहला बड़ा विद्रोह उपेंद्र कुशवाहा के रुप में हुआ। जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर उन्होंने नयी पार्टी बनायी। अब उनका दावा है कि नीतीश कुमार की पार्टी के कई एमएलए और एमएलसी उनके संपर्क मे हैं, जल्दी ही वह उनके नाम का खुलासा करेंगे। आने वाले समय में जेडीयू में बड़ी टूट होगी। हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ 'ललन'उनके दावे को खारिज करते हैं।

वह कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा खुद को मजबूत करने में जुटे हैं। आज वह तेजस्वी का विरोध कर रहे हैं। यह वही उपेंद्र कुशवाहा हैं, जो तेजस्वी के साथ खीर पका रहे थे। उनकी पार्टी में वापसी सिर्फ सीएम नीतीश कुमार के आग्रह पर हुई थी। तब पार्टी के अंदरखाने में सभी लोगों ने उनकी वापसी का विरोध किया था। उस समय के राष्ट्रीय अध्यक्ष तो इतने विरोध में थे कि उनकी ज्वाइनिंग के समय उन्होंने आने से इंकार कर दिया था।

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ताजा घटनाक्रम से कयासों को मिली ताकत

ताजा घटनाक्रम में मंगलवार को बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल दिल्ली से पटना पहुंचे तो वह उपेंद्र कुशवाहा से मिलने गए। बंद कमरे में दोनों नेताओं की बात हुई। जेडीयू नेताओं ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा कि इस मुलाकात से साफ हो जाता है कि संसदीय बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष किसके इशारे पर नाच रहे थे। हालांकि जायसवाल का कहना है कि इस मुलाकात का सियासी मतलब नहीं है। कुशवाहा ने भी मुलाकात को शिष्टाचार भेंट बताया है। इसके बावजूद राज्य में नये सियासी समीकरण बनने की संभावनाओं के कयास थमे नहीं है।

गरमा रही ''डील'' की चर्चा

जदयू से अपनी मांगों को लेकर कुशवाहा काफी समय से तिरस्कार झेल रहे थे। उन्होंने नयी पार्टी का ऐलान करने वक्त ही कहा था कि सीएम पड़ोसी के घर वारिस ढूंढ रहे हैं, गठबंधन बदलने की उनकी बात भी मानी पर आरजेडी से एक डील की बात होने लगी, नीतीश कुमार खुद कहने लगे कि राज्य के आगे का दायित्व तेजस्वी को देता हूॅं। इस सवाल पर सोमवार को ललन बोलें कि जब समय आएगा देखा जाएगा। उसके बाद नीतीश कुमार और ललन सिंह के बयानों में विरोधाभास का मुददा गरमाया, सवाल उठने शुरु हो गए तो अब ललन ने कहा है कि सीएम नीतीश कुमार ने जो बात कही है, वही मेरा भी कहना है। महागठबंधन 2025 का चुनाव उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ेगा। मेरे और नीतीश कुमार के बयान में कोई विरोधाभास नहीं है।

प्रशांत किशोर ने क्या कहा?

उधर सुराज पद यात्रा कर रहे प्रशांत किशोर का कहना है कि महागठबंधन जिस दिन बना था, मैंने कह दिया था कि यह नहीं चलेगा। यह तो नहीं बता सकता कि यह कब तब चलेगा पर अगले विधानसभा चुनाव तक तो नहीं चलेगा। महागठबंधन के दलों की खींचतान तीन महीने में ही दिखने लगी है।

1985 में शुरु किया राजनीतिक सफर

वैसे आपको बता दें कि यह पहला मौका नहीं है कि जब उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार से अलग होकर राजनीतिक दल बनाया हो। इसके पहले वर्ष 2005 और 2013 में वह नीतीश कुमार से अलग हुए थे और अपनी पार्टी बनायी थी। हालांकि दोनों बार ही वह नीतीश कुमार के पास ही लौटे। उपेंद्र ने वर्ष 1985 में अपना राजनीतिक सफर समता पार्टी से शुरु किया था। उस समय समता पार्टी में जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार जैसे नेता थे। वर्ष 2000 में समता पार्टी और जदयू का विलय हुआ। उपेंद्र कुशवाहा को वर्ष 2003 में जदयू ने नेता प्रतिपक्ष बनाया।

राष्ट्रीय समता पार्टी 2005 में बनाई

साल 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव एनडीए बिहार की सत्ता में आई। उस समय कुशवाहा अपनी ही सीट से नहीं जीत सके। कुशवाहा और नीतीश के बीच दूरियां बढ गई। तब भी कुशवाहा ने जदूय को अलविदा कह कर राष्ट्रीय समता पार्टी के नाम से अपनी नयी पार्टी बनायी थी।

मार्च 2013 में रालोसपा बनाई

साल 2010 में नीतीश के न्योते पर कुशवाहा फिर जेडीयू में आए। पर मार्च 2013 में उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) बना ली। 2014 लोकसभा चुनाव में एनडीए को समर्थन भी दे दिया। तीन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और तीनों ही सीटों पर जीत मिली और कुशवाहा, मोदी कैबिनेट में मानव संसाधन राज्य मंत्री बने। बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में रालोसपा ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया था। पर रालोसपा 23 सीटों में से सिर्फ 2 पर ही जीत सकी। 2018 तक पार्टी ढह गई।

जदूय में कराया रालोसपा का विलय

उपेंद्र कुशवाहा, 2019 लोकसभा चुनाव में विपक्षी महागठबंधन में शामिल हुए। दो सीटों पर खुद चुनाव लड़े, पर हार गए। फिर उन्होंने महागठबंधन छोड़ दिया। 2020 विधानसभा चुनाव में बीएसपी और एआईएमआईएम के साथ गठबंधन किया पर उनका दल एक भी सीट नहीं जीत पाया। 2020 विधानसभा चुनावों के बाद जदयू में रालोसपा का विलय करा दिया। उन्हें विधान परिषद का सदस्य और जदूय संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। पर अब एक बार फिर उनका नीतीश से मोहभंग हुआ।

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