
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा से पहले राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। इस बार की सबसे बड़ी सियासी लड़ाई सत्ता और कुर्सी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि 36% आबादी वाले अति पिछड़ा वर्ग (EBC) को साधने पर टिकी है। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही इस वर्ग को अपनी तरफ खींचने के लिए बड़े दांव खेल रहे हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लंबे समय से अति पिछड़े वर्ग का सबसे बड़ा भरोसेमंद नेता माना जाता रहा है। 2005 में सत्ता में आने के बाद उन्होंने पंचायती राज और शहरी निकाय चुनाव में 20% आरक्षण का प्रावधान किया। इससे पहले कर्पूरी ठाकुर सरकार में ‘मुंगेरीलाल कमीशन’ की रिपोर्ट लागू हुई थी, लेकिन नीतीश ने इस वोट बैंक को संस्थागत ताकत देने का काम किया। इसी भरोसे को ताजा करने के लिए नीतीश कुमार ने चुनावी माहौल गरमाते ही विज्ञापन का सहारा लिया और बताया कि कैसे पिछले दो दशकों में उन्होंने स्कॉलरशिप, हॉस्टल, आरक्षण और राजनीतिक भागीदारी से EBC वर्ग को सशक्त बनाया।
दूसरी ओर, राहुल गांधी ने नीतीश के इस वोट बैंक में सेंधमारी की पूरी रणनीति बनाई है। महागठबंधन ने हाल ही में जारी स्पेशल मेनिफेस्टो में बड़ा वादा किया है कि पंचायत और नगर निकाय में EBC का आरक्षण 20% से बढ़ाकर 30% किया जाएगा। सिर्फ इतना ही नहीं, गठबंधन ने यह भी घोषणा की कि सत्ता में आने पर ‘अति पिछड़ा अत्याचार निवारण अधिनियम’ लागू किया जाएगा और आरक्षण की 50% सीमा को तोड़कर नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाएगा। सरकारी ठेकों से लेकर शिक्षा अधिकार कानून तक में EBC के लिए अलग हिस्सेदारी तय करने की बात कही गई है।
बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण सबसे बड़ा फैक्टर होता है। अति पिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी करीब 36% है, जो किसी भी दल के लिए सत्ता की चाबी साबित हो सकती है। परंपरागत रूप से ये वोटर नीतीश कुमार के साथ रहे हैं, लेकिन कांग्रेस की आक्रामक सक्रियता ने चुनावी समीकरण को और दिलचस्प बना दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कांग्रेस इस वोट बैंक का थोड़ा भी हिस्सा खींचने में सफल हो गई तो उसका सीधा असर NDA के समीकरण पर पड़ेगा।
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि कांग्रेस की नई रणनीति की भनक पहले से ही एनडीए को थी। यही वजह है कि नीतीश कुमार ने विज्ञापन के जरिए अपने पारंपरिक वोटरों को याद दिलाने की कोशिश की है कि 2005 से 2025 तक उनके फैसलों ने ही EBC को मुख्यधारा की राजनीति में मजबूत किया। अब सवाल ये है कि नीतीश का अनुभव और पुराना भरोसा भारी पड़ेगा या राहुल गांधी के नए वादे इस वर्ग को लुभा पाएँगे।
बिहार चुनावी दंगल का यह दौर साफ कर रहा है कि इस बार की लड़ाई सिर्फ महागठबंधन और NDA के बीच नहीं है, बल्कि ‘कौन साधेगा EBC’ पर टिकी है। सियासी पंडितों का कहना है कि 36% की यह आबादी 2025 में बिहार की सत्ता का असली गेमचेंजर साबित हो सकती है।
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