
पटनाः बिहार की राजनीति आज एक बड़े मोड़ पर खड़ी है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार आज शाम प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों का ऐलान करेंगे। इस ऐलान के साथ ही राज्य की 243 सीटों की जंग औपचारिक रूप से शुरू हो जाएगी। 243 सदस्यीय विधानसभा की इस जंग में सभी पार्टियां अपनी पूरी ताकत झोंक चुकी हैं। चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही राज्य का राजनीतिक तापमान चरम पर पहुंच जाएगा। एनडीए, महागठबंधन, जन सुराज और छोटे क्षेत्रीय दलों, सभी ने अपनी-अपनी रणनीति फाइनल कर ली है। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की है कि बिहार के बदलते सियासी समीकरण किसके पक्ष में जाएंगे।
चुनाव आयोग ने संकेत दे दिया है कि इस बार मतदान एक या दो चरणों में कराए जाएंगे और पूरी प्रक्रिया 20 नवंबर से पहले पूरी कर ली जाएगी। आयोग ने हर मतदान केंद्र पर अधिकतम 1200 मतदाताओं की सीमा तय की है। सुरक्षा और पारदर्शिता के लिए वेबकास्टिंग और सीसीटीवी निगरानी का इंतजाम किया गया है। इस बार की व्यवस्था पिछले चुनावों से ज्यादा तेज, पारदर्शी और सुरक्षित होगी।
2020 के चुनाव में एनडीए को 125 सीटें मिली थीं, जबकि महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं। लेकिन पिछले पांच साल में राजनीतिक पाला बदलने और विधायक माइग्रेशन ने समीकरण पूरी तरह बदल दिया है। कई विधायक एनडीए और महागठबंधन के बीच आते-जाते रहे। नीतीश कुमार कई बार महागठबंधन में तो कई बार एनडीए में रहे। राजद के कुछ विधायक एनडीए में शामिल हो गए, वहीं भाजपा के सहयोगी दलों के विधायकों ने भी अपने पाले बदले।
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में राजद सबसे बड़ी पार्टी रही और उसे 75 सीटें मिली थीं। लेकिन पिछले पांच साल में इसका आंकड़ा घट-बढ़ता रहा। पहले उपचुनाव में कुढ़नी सीट खोने के बाद संख्या घटकर 74 रह गई। फिर मुकेश सहनी की वीआईपी के बोचहां विधायक के निधन और उपचुनाव में जीत के बाद संख्या 75 पर लौट गई। AIMIM के चार विधायकों के राजद में शामिल होने से यह आंकड़ा 79 हो गया। लेकिन रामगढ़ और बेलागंज सीटों के सांसद बनने के बाद खाली हुई सीटें बीजेपी ने जीत लीं, जिससे राजद का वास्तविक आंकड़ा 77 रह गया। एनडीए सरकार के फ्लोर टेस्ट के दौरान चार और राजद विधायक, प्रह्लाद यादव, चेतन आनंद, नीलम देवी और संगीता कुमारी एनडीए में शामिल हो गए। इसके अलावा भभुआ के राजद विधायक भरत बिंद भी भाजपा में शामिल हुए, जिससे राजद का वास्तविक स्कोर 69 पर सिमट गया।
बीजेपी की स्थिति मजबूत रही। 2020 में इसे 74 सीटें मिली थीं। वीआईपी के तीन विधायकों को शामिल करने के बाद और उपचुनाव में रामगढ़ और तरारी सीट जीतने के बाद बीजेपी का वर्तमान आंकड़ा 80 तक पहुँच गया।
जदयू की स्थिति 43 से शुरू हुई थी। बसपा और लोजपा के विधायक शामिल होने से संख्या बढ़कर 45 हो गई, लेकिन महज 18 महीने बाद जदयू वापस एनडीए में आ गई और स्थानीय सीटों पर हुए उपचुनाव में संख्या 44–45 के बीच बनी रही। कांग्रेस और वाम दलों की स्थिति कमजोर हुई, जबकि हम पार्टी, AIMIM और VIP/लोजपा की सीटें सीमित या समाप्त हो गईं।
पिछले पांच साल में बिहार में राजनीतिक माइग्रेशन ने विधानसभा का गणित पूरी तरह बदल दिया। राजद के कई विधायकों का एनडीए में शामिल होना, बीजेपी के उपचुनाव में मजबूत होना, और जदयू का एनडीए-पार्टी लौटना इस बदलाव का प्रमुख कारण रहे। यह केवल संख्या का बदलाव नहीं था, बल्कि सियासी समीकरण पर भी गहरा असर पड़ा। नीतीश कुमार कभी महागठबंधन के साथ तो कभी एनडीए के साथ होने की वजह से गठबंधन का समीकरण बदलता रहा।
चुनावी माहौल में यह माइग्रेशन महागठबंधन और एनडीए दोनों के लिए चुनौती बन सकता है। सीटों के आंकड़ों में छोटे-छोटे बदलाव भी चुनावी रणनीति और गठबंधन की ताकत पर बड़ा असर डालते हैं। राजनीतिक दलों के लिए यह स्पष्ट संकेत है कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में हर वोट और हर सीट की लड़ाई निर्णायक होगी।
जदयू, भाजपा, उपेंद्र कुशवाहा की RLD और जीतन राम मांझी की हम पार्टी इस बार एनडीए के अहम चेहरे हैं। सीटों के बंटवारे पर अंदरखाने खींचतान जारी है, लेकिन गठबंधन की एकजुटता बरकरार रखने का प्रयास किया जा रहा है। भाजपा ने इस बार पिछड़े वर्ग और महिला वोटर को मुख्य रणनीति के रूप में चुना है, जबकि जदयू ग्रामीण क्षेत्रों और पंचायत नेटवर्क पर भरोसा कर रही है। मांझी और कुशवाहा ने भी अपनी दावेदारी रखी है, जिससे एनडीए में हलचल जारी है।
तेजस्वी यादव की अगुवाई में आरजेडी ने रोजगार और शिक्षा को मुख्य मुद्दा बनाया है। कांग्रेस और वामदल भी महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों पर केंद्र सरकार को घेर रहे हैं। महागठबंधन ने लगभग 50 सीटों पर उम्मीदवारों की सूची तैयार कर ली है, जबकि कांग्रेस और वामदल करीब 80 सीटों पर दावेदारी कर रहे हैं। महागठबंधन का लक्ष्य युवा, महिला और ग्रामीण मतदाता वर्ग को केंद्र में रखना है।
पिछले दो वर्षों में बिहार की राजनीति में कई चौकाने वाले बदलाव हुए हैं। उपेंद्र कुशवाहा पहले महागठबंधन में थे, लेकिन अब एनडीए का हिस्सा हैं। जीतन राम मांझी एनडीए से महागठबंधन और फिर वापस एनडीए लौटे। चिराग पासवान की LJP फिलहाल एनडीए समर्थक की भूमिका निभा रही है। वहीं, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने राज्य में तीसरा विकल्प बनकर खेल को और पेचीदा कर दिया है। इन सभी बदलावों ने 243 सीटों की लड़ाई को पहले से कहीं अधिक अनिश्चित बना दिया है।
प्रशांत किशोर की पार्टी ने सीमांचल, मिथिलांचल और मगध में पारंपरिक वोटबैंक को चुनौती दी है। PK का दावा है कि वे जनता की भागीदारी से बिहार की राजनीति बदलना चाहते हैं। इसके अलावा लगभग 15 लाख नए मतदाता पहली बार वोट करेंगे, जो चुनाव के नतीजों पर बड़ा असर डाल सकते हैं।
बिहार का 2025 का चुनाव सिर्फ एनडीए बनाम महागठबंधन नहीं है। यह वोट बैंक बनाम जनादेश, पुरानी निष्ठा बनाम नई उम्मीदों की जंग है। राजनीतिक माइग्रेशन, गठबंधन और नए खिलाड़ियों की एंट्री इस बार चुनाव के परिणाम को पूरी तरह प्रभावित करेगी। आज शाम चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद बिहार की राजनीतिक दिशा तय होने वाली है।
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