गयाजी में रचा गया इतिहासः राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया पिंडदान, पितृपक्ष मेला हुआ विशेष

Published : Sep 20, 2025, 11:41 AM IST
president murmu

सार

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गया में पितृपक्ष के दौरान अपने पूर्वजों का पिंडदान किया। वे कार्यकाल में ऐसा करने वाली पहली राष्ट्रपति हैं, जिससे यह एक ऐतिहासिक क्षण बन गया। यह श्राद्ध कर्म विष्णुपद मंदिर में संपन्न हुआ।

पटनाः मोक्ष नगरी गया जी में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला अपने पूरे भव्य स्वरूप में चल रहा है और इस पावन अवसर पर शनिवार की सुबह एक ऐतिहासिक क्षण दर्ज हुआ। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू स्वयं मोक्ष भूमि गया पहुँचीं और यहाँ विष्णुपद मंदिर व फल्गु अक्षयवट में अपने पूर्वजों और पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान एवं श्राद्ध कर्मकांड किया। यह पहला अवसर है जब देश की किसी राष्ट्रपति ने अपने कार्यकाल के दौरान गया जी में पिंडदान किया। इस कदम ने न केवल मेला स्थल को विशेष बना दिया, बल्कि इसे धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से ऐतिहासिक आयाम भी प्रदान किया।

सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद

राष्ट्रपति के आगमन को देखते हुए गया जी की सुरक्षा को अभेद्य बना दिया गया था। शहर के चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल की तैनाती की गई और यातायात की विशेष व्यवस्था की गई। प्रशासन ने सुनिश्चित किया कि श्रद्धालुओं और राष्ट्रपति के कार्यक्रम में किसी प्रकार की असुविधा न हो।

पैतृक गांव और पिंडदान परंपरा

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का पैतृक गांव उड़ीसा के मयूरगंज क्षेत्र के ऊपर बेड़ा में स्थित है। उनके पितरों के पिंडदान का संचालन राजेश लाल कटारियार ने किया, जिनके पास ऊपर बेड़ा गांव के पिंडदानियों का बही-खाता सुरक्षित है। इसी परंपरा के आधार पर राष्ट्रपति का यह श्राद्ध कर्म संपन्न हुआ। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि राष्ट्रपति ने पूरे विधि-विधान और पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार पिंडदान किया। इस दौरान प्रशासनिक अधिकारी, धार्मिक पदाधिकारी और स्थानीय पंडा समाज मौजूद रहे। लोगों का कहना है कि राष्ट्रपति की उपस्थिति ने “मोक्ष भूमि” की पावनता को और भी बढ़ा दिया।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

गया जी में हर साल पितृपक्ष के अवसर पर हजारों-लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। वे अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए पिंडदान करते हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का पिंडदान इस परंपरा के प्रति गहरा सम्मान दिखाता है और यह संदेश देता है कि पारंपरिक संस्कार और रीति-रिवाज समाज के हर वर्ग के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।

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