
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में दर्ज किए गए रिकॉर्ड 64.66% मतदान ने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। यह केवल एक संख्या नहीं है, बल्कि मतदाताओं की जबरदस्त भागीदारी का प्रमाण है, जिसने सियासी पंडितों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। सवाल यह है कि इस भारी मतदान का राज क्या है, और यह किसकी ओर संकेत कर रहा है। बदलाव या सुशासन की वापसी? राजनीतिक विश्लेषण का केंद्र अब पुरुषों की नहीं, बल्कि महिलाओं की कतारें बन चुकी हैं। इस पूरे चुनावी गणित का सबसे निर्णायक कारक 'जीविका दीदी' नेटवर्क बनकर उभरा है।
बिहार रूरल लाइवलीहुड्स प्रोजेक्ट के तहत संचालित जीविका दीदी अब सिर्फ सेल्फ-हेल्प ग्रुप (SHG) की सदस्य नहीं हैं, बल्कि गांव-गांव में सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता की लीडर हैं।
जीविका दीदियों के महत्व को समझते हुए दोनों प्रमुख गठबंधन एनडीए (NDA) और महागठबंधन (MGB) ने इस वर्ग को लुभाने के लिए बड़े दाँव चले हैं। चुनाव का परिणाम काफी हद तक इसी समीकरण पर निर्भर करेगा कि दीदी किस खेमे पर भरोसा जताती हैं।
एनडीए द्वारा महिला रोजगार योजना के तहत 1.41 करोड़ महिलाओं को ₹10,000 की सहायता राशि पहले ही दी जा चुकी है। शेष लाभार्थियों को दिसंबर तक राशि देने का वादा। समूह बनाने और रोज़गार के लिए ₹2 लाख तक की अतिरिक्त सहायता। यह पिछला भरोसा और कृतज्ञता पर आधारित वोट माना जाता है। नीतीश कुमार स्वयं को जीविका दीदियों के जन्मदाता के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
महागठबंधन की ओर से 'वेतन' और 'स्थायी रोज़गार' का वादा किया गया है। जीविका दीदियों को ₹30,000 प्रति माह वेतन, स्थाई नौकरी, अतिरिक्त काम पर ₹2,000 मानदेय, लोन पर ब्याज माफी और ₹5 लाख तक का बीमा कवरेज। यह भविष्य की आर्थिक सुरक्षा और सरकारी कर्मचारी का दर्ज़ा देने पर आधारित है। यह वादा दर्शाता है कि महागठबंधन इस संगठित वोट बैंक को तोड़ना चाहता है।
NDA का मानना है कि महिलाओं ने सुशासन, सुरक्षा और पूर्व में मिली आर्थिक सहायता (₹10,000) के प्रति अपनी कृतज्ञता ज़ाहिर की है। यदि ऐसा है, तो यह रिकॉर्ड मतदान NDA के पक्ष में जाएगा। वहीं महागठबंधन का मानना है कि यह रिकॉर्ड तोड़ मतदान बदलाव की लहर है। महिलाएँ अब केवल ₹10,000 की सहायता से संतुष्ट नहीं हैं, बल्कि स्थायी रोज़गार और ₹30,000 मासिक वेतन जैसी बड़ी आर्थिक महत्वाकांक्षाओं के साथ वोट देने आई हैं।
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