कुम्हरार, बांकीपुर, पटना साहिब…बीजेपी का 3 ‘अभेद्य किला’ हिलाने निकला महागठबंधन

Published : Oct 22, 2025, 06:13 PM IST
BJP Announces Full Candidate List

सार

बिहार चुनाव 2025 से पहले पटना की शहरी सीटों पर मुकाबला रोचक है। बीजेपी के गढ़ कुम्हरार, बांकीपुर व पटना साहिब में महागठबंधन जातीय समीकरण से चुनौती दे रहा है। बीजेपी द्वारा प्रत्याशी बदलने से भी समीकरण बदले हैं, जिससे कड़ी टक्कर की उम्मीद है।

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण से पहले पटना का सियासी तापमान उबाल पर है। राजधानी पटना के जिन शहरी इलाकों को अब तक बीजेपी का अभेद्य किला माना जाता था, इस बार वही सीटें महागठबंधन की नई रणनीति और जातीय संतुलन के कारण चर्चा में हैं। कुम्हरार, बांकीपुर और पटना साहिब, तीनों सीटें परंपरागत रूप से बीजेपी के कब्जे में रही हैं, लेकिन इस बार हालात कुछ अलग दिख रहे हैं, कारण है पटना साहिब और कुम्हरार में बीजेपी ने प्रत्याशी बदले हैं।

कुम्हरार: बीजेपी की ‘सुरक्षित सीट’ पर कांग्रेस की सेंध

पटना की कुम्हरार विधानसभा सीट को बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। पिछले तीन चुनावों में यहां भगवा लहर कायम रही। 2020 में बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण सिन्हा ने राजद के डॉ. धर्मेंद्र कुमार को लगभग 21,000 वोटों से हराया था। लेकिन इस बार समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं।

बीजेपी ने इस बार कायस्थ समुदाय से हटकर वैश्य समाज के संजय गुप्ता को टिकट दिया है। वहीं महागठबंधन ने रणनीतिक फैसला लेते हुए यह सीट कांग्रेस को दी है। कांग्रेस ने जातीय संतुलन साधने के लिए इंद्रजीत चंद्रवंशी को मैदान में उतारा है। चंद्रवंशी समुदाय, यादव और मुस्लिम वोट के साथ गठबंधन की सामाजिक इंजीनियरिंग यहां बीजेपी के लिए सिरदर्द बन सकती है। अगर कांग्रेस का यह प्रयोग कामयाब होता है, तो कुम्हरार सीट पर पहली बार मुकाबला बराबरी का हो सकता है।

बांकीपुर: नितिन नवीन के किले में ‘रेखा गुप्ता’ की दस्तक

बांकीपुर सीट पर पिछले दो दशकों से बीजेपी का एकछत्र राज रहा है। यह सीट बीजेपी के लिए सिर्फ सियासी नहीं बल्कि प्रतीकात्मक भी रही है। 2020 के चुनाव में बीजेपी के नितिन नवीन ने कांग्रेस उम्मीदवार लव सिन्हा को 25,000 से अधिक मतों से शिकस्त दी थी। दोनों उम्मीदवार कायस्थ समुदाय से थे।

लेकिन इस बार महागठबंधन ने यहां बड़ा दांव खेला है। राजद ने कांग्रेस से यह सीट ली और जातीय समीकरण को साधते हुए रेखा गुप्ता (तेली समाज) को मैदान में उतारा है। तेली वोट बैंक के साथ यादव और मुस्लिम मतदाताओं के जुड़ने की संभावना से इस बार मुकाबला सीधा और रोचक बन गया है। वहीं बीजेपी ने नितिन नवीन को फिर से मैदान में उतारकर अपने पुराने वोट बैंक को बनाए रखने की कोशिश की है। लेकिन शहरी सीटों में महिलाओं और व्यापारी वर्ग की राय इस बार निर्णायक साबित हो सकती है।

पटना साहिब: नंदकिशोर यादव के हटने से बदला समीकरण

पटना साहिब विधानसभा सीट बीजेपी की पहचान रही है। कई बार के विधायक और बिहार सरकार में मंत्री रहे नंदकिशोर यादव यहां की राजनीति का चेहरा रहे हैं। लेकिन इस बार पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया है। यही फैसला इस सीट के सियासी समीकरण को उलट सकता है।

बीजेपी ने अब तक नया उम्मीदवार घोषित नहीं किया है, जबकि महागठबंधन ने इस सीट को कांग्रेस के खाते में डाल दिया है। कांग्रेस ने यहां से शशांक शेखर यादव को उतारा है, जो न सिर्फ पढ़े-लिखे उम्मीदवार हैं बल्कि सियासी विरासत वाले परिवार से आते हैं। उनके दादा रामलखन सिंह यादव इस सीट से तीन बार चुनाव लड़ चुके हैं। अगर यादव और मुस्लिम मतदाता एकजुट होते हैं तो कांग्रेस इस सीट पर बीजेपी को कड़ी चुनौती दे सकती है। वहीं बीजेपी के वोटरों में नंदकिशोर यादव की अनुपस्थिति से असमंजस की स्थिति है, जिसका फायदा विपक्ष उठा सकता है।

जातीय गणित बनाम शहरी साख

महागठबंधन ने इस बार पटना की सीटों पर जातीय समीकरण को प्राथमिकता दी है। जहां बीजेपी ने ‘शहरी चेहरों’ और अपने पारंपरिक वोट बैंक पर भरोसा रखा है, वहीं महागठबंधन ने हर सीट पर जातीय और सामाजिक संतुलन का ऐसा घालमेल किया है जो पहली बार पटना की सियासत में हलचल मचा रहा है।

कुम्हरार में वैश्य बनाम चंद्रवंशी, बांकीपुर में कायस्थ बनाम तेली, और पटना साहिब में यादव बनाम अपर कास्ट, तीनों जगह मुकाबले के अलग-अलग सामाजिक स्वरूप बन चुके हैं। राजद और कांग्रेस का उद्देश्य साफ है। बीजेपी के गढ़ में सेंध लगाकर कम से कम दो सीटों पर जीत दर्ज कर सियासी मनोबल बढ़ाना।

क्या वाकई टूटेगा बीजेपी का किला?

यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है, लेकिन इतना तय है कि 2025 का यह चुनाव पटना की राजनीति का रुख बदल सकता है। बीजेपी को जहां अपनी पुरानी साख और विकास कार्यों पर भरोसा है, वहीं महागठबंधन पूरी ताकत के साथ जातीय और सामाजिक संतुलन के सहारे मैदान में उतर चुका है। कुम्हरार, बांकीपुर और पटना साहिब, ये तीनों सीटें इस बार न केवल पटना बल्कि पूरे बिहार के राजनीतिक मूड का संकेत देने वाली साबित होंगी।

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