Big News: बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन को रोकने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार लेकिन आयोग की मंशा पर उठाए सवाल

Published : Jul 10, 2025, 05:02 PM ISTUpdated : Jul 10, 2025, 05:20 PM IST
Supreme Court

सार

बिहार चुनाव 2025 से पहले विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से तीन प्रमुख स्पष्टीकरण मांगे। कोर्ट ने कहा- आधार, राशन कार्ड और वोटर ID को पहचान के दस्तावेज के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए।

SC on voterlist revision: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिहार विधानसभा चुनाव के पहले वोटर लिस्ट रिवीजन को रोकने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई की है। अपनी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने वोटर लिस्ट रिवीजन को रोकने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने वोटर लिस्ट रिवीजन को जारी रखने की अनुमति देते हुए इसे संवैधानिक जिम्मेदारी बताया है। हालांकि,बेंच ने चुनाव आयोग (Election Commission of India) को कटघरे में खड़ा करते हुए कई तीखे सवाल पूछे। आयोग की मंशा पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने कहा कि आधार कार्ड (Aadhaar), राशन कार्ड और खुद चुनाव आयोग द्वारा जारी EPIC कार्ड (Electoral Photo Identity Card) को पहचान के वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। अब इस मुद्दे पर अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी जिसमें चुनाव आयोग को अपने अधिकार, प्रक्रिया की वैधता और टाइमिंग पर कोर्ट के सवालों का जवाब देना होगा।

सवालों के घेरे में EC का ‘Special Intensive Revision’

यह टिप्पणी उस वक्त आई जब कोर्ट बिहार में मतदाता सूची के 'विशेष तीव्र पुनरीक्षण' (Special Intensive Revision of Electoral Roll) पर सुनवाई कर रही थी। यह कवायद 2003 के बाद मतदाता बने लोगों से दोबारा पहचान सत्यापन की मांग कर रही है—वो भी आधार या EPIC कार्ड के बिना।

  1. सुप्रीम कोर्ट ने EC से पूछे ये तीन अहम सवाल:
  2. किस कानून के तहत यह 'विशेष पुनरीक्षण' हो रहा है?
  3. इसकी प्रक्रिया कितनी वैध और निष्पक्ष है?
  4. चुनाव के ठीक पहले इसकी टाइमिंग क्या दर्शाती है?
  5. सिर्फ पहचान का मुद्दा है तो आधार क्यों नहीं?

चुनाव आयोग शक के घेरे में?

जस्टिस सुधांशु धूलिया (Justice Sudhanshu Dhulia) और जस्टिस जॉयमाला बागची (Justice Joymala Bagchi) की बेंच ने कहा कि अगर यह प्रक्रिया नागरिकता और पहचान से जुड़ी है तो आधार जैसे आम सरकारी दस्तावेजों को स्वीकार न करना उचित नहीं है। कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि हमें गंभीर संदेह है कि EC इतनी बड़ी आबादी (लगभग 8 करोड़) के इस तरह के पुनरीक्षण को बिना किसी को बाहर किए निष्पक्ष रूप से और अपील का मौका दिए बिना पूरा कर पाएगा।

EC का बचाव: आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं

EC की ओर से पेश अधिवक्ता ने जवाब में कहा कि आधार सिर्फ पहचान है, नागरिकता का प्रमाण नहीं। उन्होंने तर्क दिया कि कई विदेशी नागरिकों को भी आधार जारी हुआ है इसलिए इसे नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता। इस पर कोर्ट ने पलटकर पूछा कि फिर जाति प्रमाण पत्र आधार पर कैसे जारी हो सकता है? EC ने कहा कि जाति प्रमाण पत्र सिर्फ आधार पर नहीं दिया जाता।

राजनीतिक बहस तेज

कांग्रेस और आरजेडी जैसे महागठबंधन के सहयोगी दलों ने इस पुनरीक्षण को सत्तारूढ़ दल के पक्ष में मतदाता सूची से 'वांछित नाम हटाने' की कोशिश बताया। वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने कोर्ट को बताया कि यह कवायद गरीबों, प्रवासी मजदूरों और हाशिए पर खड़े वर्गों को बाहर करने के लिए की जा रही है।

महुआ मोइत्रा और ADR ने दायर की थी याचिका

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra), एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और अन्य याचिकाकर्ताओं ने आशंका जताई कि यह प्रक्रिया बंगाल चुनाव से पहले भी दोहराई जा सकती है।

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