बिहार में जाति आधारित जनगणना की खिलाफत करने वालों से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा-जाति या उपजाति बताने में नुकसान क्या है?

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने शुक्रवार को पटना हाईकोर्ट के 1 अगस्त के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की।

Bihar Caste census: बिहार में हो रहे जाति आधारित जनगणना पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए पूछा कि अगर किसी व्यक्ति ने बिहार जाति सर्वे में जाति या उप-जाति का डिटेल दे दिया है तो इसमें क्या नुकसान है। सरकार सर्वे में मिले व्यक्तिगत डेटा को भी प्रकाशित नहीं कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट के किसी भी फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। राज्य सरकार का पक्ष जानने के बाद 21 अगस्त को कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने शुक्रवार को पटना हाईकोर्ट के 1 अगस्त के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। पटना हाईकोर्ट ने जाति सर्वे को जारी रखने का फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली याचिकाओं में कहा गया कि यह लोगों की निजता के अधिकार का उल्लंघन है।

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बेंच ने एनजीओ यूथ फॉर इक्वालिटी से पूछा-क्या नुकसान है?

बेंच ने गैर सरकारी संगठन 'यूथ फॉर इक्वालिटी' की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन से पूछा कि अगर कोई अपनी जाति या उपजाति का नाम देता है और वह डेटा प्रकाशित नहीं किया जाता है तो नुकसान क्या है। जो जारी करने की मांग की जा रही है वह क्यूमुलेटिव फीगर्स हैं। यह निजता के अधिकार को कैसे प्रभावित करता है? सर्वेक्षण के लिए तैयार प्रश्नावली में जो सवाल हैं, क्या आपको लगता है कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के विपरीत है। दरअसल, एनजीओ ने बिहार के जाति सर्वे कराने के बिहार सरकार के फैसले को चुनौती दी है।

बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया सर्वे पूरा हो गया और डेटा भी अपलोड

सुनवाई के दौरान बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि जाति सर्वेक्षण 6 अगस्त को पूरा हो गया था। एकत्रित डेटा 12 अगस्त तक अपलोड किया गया था। सर्वेक्षण के दौरान जो डेटा एकत्र किया गया है, उसे BIJAGA (बिहार जाति आधारित गणना) ऐप पर अपलोड किया गया है। बेंच ने दीवान से कहा कि वह याचिकाओं पर नोटिस जारी नहीं कर रही है क्योंकि तब अंतरिम राहत के बारे में सवाल उठेगा और सुनवाई नवंबर या दिसंबर तक टल जाएगी। बेंच ने सरकार से कहा कि वह व्यक्तिगत डेटा रिलीज नहीं करेंगे और क्यूमुलेटिव डेटा का इस्तेमाल विभिन्न विभागों में एनालसिस के लिए करेंगे। इस पर सरकार के वकील ने कहा कि पहले ही बताया जा चुका है कि कोई व्यक्तिगत डेटा रिलीज नहीं किया जाना है।

कोर्ट ने किया रोक से इनकार

याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व कर रही वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह ने कहा कि वे जानती हैं कि प्रक्रिया पूरी हो चुकी है लेकिन डेटा के प्रकाशन पर रोक लगाने के लिए बहस करेंगी। बेंच ने कहा कि वह तब तक किसी चीज पर रोक नहीं लगाएगी जब तक कि प्रथम दृष्टया कोई मामला न बन जाए क्योंकि हाईकोर्ट का फैसला राज्य सरकार के पक्ष में है। बेंच ने वकील से कहा कि चाहे आप इसे पसंद करें या नहीं, डेटा अपलोड कर दिया गया है।

पहले भी कोर्ट ने रोक लगाने से किया था इनकार

7 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने जाति सर्वेक्षण को हरी झंडी देने वाले पटना हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। गैर सरकारी संगठनों 'यूथ फॉर इक्वालिटी' और 'एक सोच एक प्रयास' द्वारा दायर याचिकाओं के अलावा एक और याचिका नालंदा के अखिलेश कुमार ने दायर की है।

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