
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में शानदार प्रदर्शन के बाद भारतीय जनता पार्टी ने बड़ा नेतृत्वात्मक फैसला लेते हुए सम्राट चौधरी को विधायक दल का नेता और विजय कुमार सिन्हा को उप नेता चुना। इसके साथ ही साफ हो गया कि भाजपा इस कार्यकाल में भी दोनों नेताओं को उप मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी देगी। लंबे समय से चल रही कयासबाजियों पर आज विराम लग गया है—डिप्टी सीएम के चेहरे बदले नहीं जाएंगे।
भाजपा का यह निर्णय सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि कई राजनीतिक समीकरणों के कारण बेहद महत्वपूर्ण है। जनवरी 2024 से NDA सरकार संभालते हुए सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा ने न सिर्फ CM नीतीश कुमार के साथ बेहतर तालमेल बैठाया, बल्कि सरकार की स्थिरता सुनिश्चित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दोनों नेताओं की संयोजन क्षमता और आक्रामक नेतृत्व शैली उन्हें भाजपा के भीतर भी एक अलग श्रेणी में रखती है। चुनाव प्रचार के दौरान भी दोनों ने अपनी जातीय और राजनीतिक प्रभावशीलता के कारण पार्टी को अतिरिक्त लाभ दिलाया।
सम्राट चौधरी कुशवाहा समुदाय से आते हैं, जो बिहार की OBC राजनीति में निर्णायक भूमिका रखता है। पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी के पुत्र सम्राट ने 1999-2000 में चुनाव जीतकर राजनीति में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। 2017 में BJP में शामिल होने के बाद वे तेज़ी से पार्टी के आक्रामक चेहरे के रूप में उभरे।
2023 में बिहार बीजेपी अध्यक्ष बने और जनवरी 2024 में उपमुख्यमंत्री। उनकी कुशवाहा पृष्ठभूमि भाजपा के OBC जनाधार को बड़ा सहारा देती है। यही कारण है कि भाजपा ने इस बार भी उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें डिप्टी सीएम पद पर बनाए रखने का फैसला किया।
विजय कुमार सिन्हा भाजपा के उन नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने लालू-राबड़ी शासन के खिलाफ लगातार संघर्ष किया और जमीन पर पार्टी संगठन को मजबूत किया। 2005 से लगातार लखीसराय से चुनाव जीतते आ रहे सिन्हा ने अपनी आक्रामक शैली के कारण हमेशा सुर्खियां बटोरीं—खासकर विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए (2020–2022)।
वे भूमिहार जाति से आते हैं, जिसे BJP का सबसे मज़बूत वोट बैंक माना जाता है। यही जातीय समीकरण भी उनके दोबारा उपमुख्यमंत्री बनने के फैसले के केंद्र में है। साथ ही उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय नेतृत्व का भरोसेमंद चेहरा माना जाता है।
बीजेपी शीर्ष नेतृत्व नहीं चाहता था कि पार्टी के अंदर किसी भी प्रकार की गुटबाजी या टकराव पनपे। यदि नए चेहरों को मौका दिया जाता, तो यह संतुलन प्रभावित हो सकता था। इसीलिए पार्टी ने स्थिर, अनुभवी और जातीय रूप से प्रभावी संयोजन को चुनना बेहतर समझा। सम्राट (कुशवाहा) + सिन्हा (भूमिहार) का फार्मूला भाजपा को सामाजिक समीकरण और राजनीतिक मजबूती दोनों स्तर पर फायदा देता है।
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