
पटना। बिहार की राजनीति एक बार फिर नए मोड़ पर पहुंच चुकी है। चुनावी उत्साह थम चुका है, लेकिन सत्ता के गलियारों में गहमागहमी अपने चरम पर है। हर तरफ एक ही सवाल गूंज रहा था—इस बार डिप्टी सीएम कौन होगा? और अब इसका जवाब भी सामने आ चुका है। उपमुख्यमंत्रियों के नाम फाइनल हो गए हैं, और शपथ ग्रहण से पहले ही नई सरकार की तस्वीर काफी हद तक साफ हो चुकी है।
दिलचस्प बात यह है कि जिस पद को लेकर इतनी चर्चा है, उसका संविधान में कहीं भी उल्लेख नहीं है।डिप्टी सीएम का पद संवैधानिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और सांकेतिक माना जाता है। गठबंधन संतुलन, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक समन्वय को बनाए रखने के लिए कई राज्यों में दो-दो उपमुख्यमंत्री बनाए जाते रहे हैं। आर्टिकल 163 और 164 में मुख्यमंत्री और मंत्रीपरिषद के अधिकार तो बताये गए हैं, लेकिन डिप्टी सीएम का उल्लेख नहीं है।यही वजह है कि राज्यपाल शपथ भी मंत्री पद की ही दिलाते हैं।
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कानूनी रूप से देखें तो डिप्टी सीएम के पास वही शक्तियां होती हैं जो किसी कैबिनेट मंत्री के पास होती हैं। लेकिन व्यवहारिक रूप में उनका कद बड़ा माना जाता है।
यानी सत्ता संरचना में डिप्टी सीएम का पद भले संवैधानिक न हो, लेकिन राजनीतिक दृष्टि से बहुत प्रभावी माना जाता है।
नीतीश कुमार के 10वीं बार मुख्यमंत्री बनने के साथ-साथ अब यह साफ है कि बिहार की नई कैबिनेट में दो ताकतवर चेहरों—विजय सिन्हा और सम्राट चौधरी—की एंट्री पक्की है। शपथ से पहले ही सत्ता संतुलन और राजनीतिक संकेत साफ हैं कि एनडीए इस बार भी स्थिर और संतुलित सरकार का संदेश देना चाहता है।
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