आदिवासी इलाके में टूरिज्म को बढ़ावा, देश-दुनिया के लोग होम स्टे का ले रहे आनंद, पारंपरिक ऑर्गेनिक खाने से हो रही जबरदस्त आमदनी

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 350 किलोमीटर दूर आदिवासी इलाके में एक नया अध्याय लिखा जा रहा है। यहां के आदिवासियों ने आत्मनिर्भर बनने की राह में बड़ा मुकाम हासिल किया है। आप भी जानें उनकी स्टोरी।

Tourism For Tribal. रायपुर से करीब 350 किमी दूर बस्तर जिले में कांगेर वैली नेशनल पार्क है। कांगेर वैली के कोर एरिया में दूरस्थ वनांचल गांव गुड़ियापदर है। इस गांव में दूर-दूर फैले गोंड आदिवासी परिवार के सिर्फ 35 घर हैं। गांव के चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे साल के पेड़ और पहाड़ी मैना पक्षी का कलरव ही सुनाई देता है। करीब चार-पांच साल पहले ये खूबसूरत इलाका नक्सली दहशत के कारण जाना जाता था लेकिन अब इसकी पहचान बदल रही है।

नक्सल इलाका पर्यटन में कैसे बदला

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बस्तर में नक्सली घटनाओं में लगातार कमी और सुरक्षा कैंप स्थापित होने की वजह से यहां देश-विदेश के सैलानी बड़ी संख्या में आ रहे हैं। गुड़ियापदर गांव की अनूठी बात है यहां सभी 35 गोंड आदिवासी परिवारों ने सैलानियों की आवभगत के लिए अपने घर के दरवाजे खोल रखे हैं। यहां पर्यटक बहुत ही कम किराया देकर ठहरते हैं और घर के खाने का लुत्फ उठाते हैं। शायद ये छत्तीसगढ़ का पहला ऐसा गांव होगा जहां गांव के सभी घर होम स्टे की सुविधा दे रहे हैं। इससे आदिवासी परिवारों को रोजगार भी मिल रहा है।

ऐसे हुई पर्यटन की शुरुआत

इस गांव में अधिकांश परिवार सुकमा जिले के बारसेरास गांव में खेती अच्छी ना होने से माइग्रेट होकर आए हैं। इस इलाके के जानकार और पर्यटन विशेषज्ञ शकील रिजवी बताते हैं कि साल 2007 में जर्मनी से आये पर्यटक कपल ने उन्हें होम स्टे शुरु करने का आइडिया दिया। उनकी सलाह पर मैंने यहां आदिवासियों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया और इस इलाके में पर्यटन की असीम संभावनाओं के बारे में बताया। इसके बाद देश-विदेश की कई सारी पर्यटन की वेबासाइट में इस इलाके की खूबसूरती के बारे में रजिस्टर किया। अब इसकी लोकप्रियता का आलम ये है कि हर साल विदेश से ही 50 से अधिक पर्यटक आते हैं। विदेश से आने वाले मेहमान प्रमुख रूप से फ्रांस, इटली, स्पेन, जर्मनी, पुर्तगाल, जापान और अमेरिका से होते हैं। देश भर के विभिन्न राज्यों के महानगरों से सुकून और खूबसूरती की तलाश में 500 से अधिक सैलानी यहां आकर रूक रहे हैं।

आदिवासी इलाके का ईको टूरिज्म

यहां पर जंगल कटना कम हुआ और आत्मनिर्भर हुए होम स्टे और ईको टूरिज्म ने इस इलाके के आदिवासियों के जनजीवन में बड़ा बदलाव किया है। कांगेर वैली नेशनल पार्क के डायरेक्टर धम्मशील गनवीर ने बताया कि पहले इस इलाके में आजीविका चलाने के लिए जंगली जानवरों का शिकार और पेड़ों को काटना बहुत ही आम था लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है। होम स्टे और पर्यटन बढ़ने से यहां आदिवासी परिवार आत्मनिर्भर हो रहे हैं। अब उनकी जंगलों पर निर्भरता कम हुई है। वे बताते हैं कि एक और बड़ा आया है कि यह इलाका पहाड़ी मैना के लिए जाना जाता है। पर्यटन बढ़ने के कारण यहां आदिवासियों को ही मैना मित्र बना दिया गया है। नतीजा ये हुआ कि कभी-कभी नजर आने वाली पहाड़ी मैना होम स्टे के आसपास भी दिख रही है।

कैसे करते हैं आदिवासी परिवार वेलकम

आदिवासी परिवारों के होम स्टे की विशेषता यह है कि पर्यटकों के आने पर आदिवासी परिवार पारंपरिक रूप से उनका स्वागत करते हैं। जंगल में ऑर्गेनिक तरीके से उगाई गई सब्जियां, देशी दाल और कंदमूल से बने व्यंजन मेहमानों की थाली में परोसे जाते हैं। पर्यटकों के मनोरंजन के लिए रात में आदिवासी संस्कृति से जुड़े नृत्य और लाइफ स्टाइल की प्रस्तुति होती है। एक दिन होमस्टे का चार्ज प्रति व्यक्ति मात्र सात सौ और खाने का 6 सौ रूपये होता है। पूरा मैनेजमेंट संभालने के लिए गुड़ियापदर इको टूरिज्म कमेटी बनाई गई है। नेशनल पार्क में वन प्रबंधन समिति के सहयोग से टूरिस्ट को ट्रेकिंग की भी सुविधा है। गुड़ियापदर के साथ आस-पास के लगे हुए गांव छोटे कवाली, पुसपाल, निलखुलवाड़ा, चिलकुरी, बोदल में भी होम स्टे चलाया जा रहा है।

प्रकृति की गोद में बसा है आदिवासी गांव

यहां की खूबसूरती देखने के लिए पर्यटक चले आते हैं। गुड़ियापदर गांव प्रकृति की गोद में बसा हुआ है। यहां वाल्केनिक पूल जो कि नेचुरल बाथ टब जैसा ही है। यह पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। यहां डायनासोर युग की वनस्पति ‘फर्न ’ अब तक मौजूद हैं, जो डायनासोर का भोजन हुआ करती थी। इस इलाके में जीव-जंतुओं की रेयर स्पीसीज पर्यटकों को बेहद आकर्षित करती हैं। यहां ज्वाइंट रेड स्क्वैरल और अलैक्जेंडर पैराकिट और बार्किंग डियर बहुत देखने को मिलते हैं।

कैसे गुलजार हुआ आदिवासी इलाका

नक्सली वारदातों में कमी से यहां का पर्यटन बढ़ा है। ये इलाका नक्सल समस्या के कारण बेहद संवेदनशील रहा है लेकिन पिछले कुछ सालों में नक्सली घटनाओं में बहुत कमी आई है। बस्तर जिले में साल 2018 में 17 नक्सल घटनाएं, साल 2019 में 11, 2020 में 14, 2021 में 5, 2022 में 3 और साल 2023 में अब तक एक भी नक्सल वारदात नहीं हुई है। लगातार सुरक्षा बलों के कैंप खुले हैं। बस्तर जिले में बोदली, तिरिया, भडरीमहू, रेखाघाटी, चांदामेटा और कांटाबांस में नए सुरक्षा कैंप खुले हैं जिससे सुरक्षा को लेकर सभी में आत्मविश्वास जागा है।

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