छत्तीसगढ़ में बंद खदानों को मछली पालन केंद्रों में बदला जा रहा है, जिससे महिलाओं को रोजगार और आर्थिक स्वतंत्रता मिल रही है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत केज कल्चर तकनीक से मछली पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
रायपुर। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना देश के मत्स्य पालन क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने के साथ भारत की नीली अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह योजना छत्तीसगढ़ में महिलाओं का जीवन बदल रही है। महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत हो रहीं हैं और अपने परिवार को आगे बढ़ा रही हैं।
इस योजना के तहत छत्तीसगढ़ में बंद खदानों को केज कल्चर तकनीक से मछली पालन का केंद्र बनाया गया है। केज कल्चर सिस्टम में मछली पालन आसान होता है। इसमें मछलियों को पकड़ने में ज्यादा परेशानी नहीं होती। यहां पंगेसियस और तिलापिया जैसी मछलियों का उत्पादन तेजी से हो रहा है।
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में बंद पड़ी खदानें अब रोजगार और मछली उत्पादन का केंद्र बन चुकी हैं। इससे ग्रामीण महिलाओं और युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर सामने आए हैं। इसके साथ ही देशभर में ताजी मछलियों की आपूर्ति भी बढ़ी है।
जोरातराई की दो खदानों में 9 करोड़ 72 लाख रुपए की लागत से 324 केज स्थापित किए गए हैं। इन केज में तेजी से बढ़ने वाली मछलियां पाली जा रही हैं। केज में पाली गईं मछलियां 5 महीने में बाजार भेजने लायक हो जाती हैं। एक केज में करीब 2.5 से 3 टन मछलियों का उत्पादन हो रहा है। इस प्रयास से 150 से अधिक लोगों को रोजगार मिला है। महिलाएं हर महीने 6 से 8 हजार रुपए तक कमा रहीं हैं।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मछली पालकों को 60% तक अनुदान दिया गया है। केज कल्चर तकनीक से मछलियों को स्वस्थ और सुरक्षित माहौल में पाला जाता है। इससे मछलियों में संक्रमण का खतरा न के बराबर होता है।
4.86 करोड़ रुपए की लागत से जोरातराई के एक खदान में 162 यूनिट केज लगाई गई है। सरकार मछली पालकों को 40 से 60 फीसदी अनुदान दे रही है। मछलियों को स्थानीय और राष्ट्रीय बाजारों में भेजा जा रहा है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है और लोगों को ताजी मछलियां खाने को मिल रही हैं।
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