
Supreme Court Footpath Order: देशभर में फुटपाथों की दुर्दशा और पैदल चलने वालों की उपेक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे 2 महीने के भीतर यह सुनिश्चित करें कि उनके सभी शहरों और गांवों में साफ-सुथरे, अतिक्रमण मुक्त और दिव्यांगजन-अनुकूल फुटपाथ हों।
न्यायमूर्ति एएस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने स्पष्ट किया कि फुटपाथों की अनुपलब्धता केवल यातायात की समस्या नहीं है, बल्कि यह जीवन के अधिकार से जुड़ा मुद्दा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब फुटपाथ नहीं होते, तो गरीब, बुजुर्ग, बच्चे और दिव्यांगजन सड़कों पर चलने को मजबूर होते हैं और हादसों का शिकार बनते हैं।
याचिका में दर्ज आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं:
इन आंकड़ों से साफ है कि फुटपाथ न होना एक बड़ा कारण है जिससे पैदल चलने वालों की जान जोखिम में रहती है।
इस जनहित याचिका को दाखिल किया गया था सामाजिक कार्यकर्ता और युवा उद्यमी हेमंत जैन द्वारा। कोर्ट में उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन ने पक्ष रखा। याचिका में बताया गया कि देशभर के फुटपाथों पर अतिक्रमण, निर्माण की कमी और दिव्यांगों के लिए सुविधाओं का अभाव है।
हेमंत जैन ने कहा: "यह याचिका सिर्फ मेरे द्वारा दाखिल की गई कानूनी याचिका नहीं थी, बल्कि यह उन करोड़ों लोगों की आवाज थी जो रोज़ सड़क पर जान हथेली पर रखकर चलते हैं। आज उन्हें संविधान ने एक मजबूत आवाज दी है।"
यह फैसला उन लाखों भारतीयों के लिए राहत की सांस जैसा है जो रोज़ाना सड़कों पर चलकर जोखिम उठाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से उम्मीद है कि आने वाले समय में पैदल यात्रियों को न केवल बेहतर फुटपाथ मिलेंगे, बल्कि उनका जीवन भी सुरक्षित होगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश केवल निर्देश नहीं, बल्कि एक संवेदनशील समाज की ओर कदम है। अब राज्य सरकारों को जवाबदेही निभानी होगी और पैदल चलने वालों को उनका संवैधानिक अधिकार देना होगा।
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