30 लाख की फीस, 25 लाख का लोन और एक सपना –चौकीदार से IIM शिलॉन्ग तक कौन हैं ये CAT वॉरियर?

Published : May 18, 2025, 09:39 AM IST

पिता की मौत के बाद चौकीदारी करने वाला दीपेश और गुजराती मीडियम से पढ़े सूरज, दोनों ने संघर्ष की अंधेरी गलियों से निकलकर CAT पास किया और IIM शिलांग तक पहुंच गए। क्या किस्मत ने पलटा खाया या मेहनत ने चमत्कार किया? जानिए इस रहस्यमयी सफर की कहानी।

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दीपेश केवलानी और सूरज सोनी के संघर्ष की कहानी सुन चौंक जाएंगे आप

गुजरात से दो सक्सेज स्टोरियां सामने आई हैं, जिन्होंने यह साबित कर दिया कि कठिनाइयां अगर मजबूत इरादों से टकराएं तो सफलता जरूर मिलती है। एक तरफ हैं दीपेश केवलानी, जिन्होंने अपने छोटे भाई दिनेश की IIM लखनऊ की सफलता से प्रेरित होकर CAT परीक्षा में 92.5 पर्सेंटाइल स्कोर किया और अब IIM शिलांग से ऑफर प्राप्त किया है। दूसरी ओर हैं सूरज सोनी, जिनका बचपन एक चपरासी पिता और घरेलू सहायिका माँ के साथ संघर्षों में बीता, लेकिन अब वही सूरज IIM में पढ़ाई करेंगे।

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दीपेश की कहानी: चौकीदार से IIM स्टूडेंट बनने तक

जब दीपेश केवल 11 साल के थे, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई। आर्थिक तंगी के बीच उनकी माँ और मामा ने उन्हें संभाला। पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्होंने एक जूते की दुकान पर काम किया और फिर सरकारी अस्पताल में चौकीदार की नौकरी पकड़ ली, जहाँ वे आज भी कार्यरत हैं।

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शैक्षणिक सफर

दीपेश ने कक्षा 10 और 12 दोनों में 80% से अधिक अंक प्राप्त किए। इसके बाद उन्होंने बीकॉम और एमकॉम की डिग्री हासिल की। उन्होंने CAT 2024 में 92.5 पर्सेंटाइल स्कोर कर IIM शिलांग से एडमिशन ऑफर पाया है।

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अभी भी जारी है संघर्ष

IIM शिलांग की फीस लगभग 30 लाख रुपये है, जिसके लिए दीपेश 25 लाख का एजुकेशन लोन लेने की तैयारी में हैं। उन्होंने कहा, "मेरे भाई की सफलता ने मुझे भी प्रेरित किया कि मैं कभी हार न मानूं।"

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सूरज सोनी की कहानी: गुजराती मीडियम से IIM तक

अहमदाबाद के ढोलका के पास चालोदा गांव के सूरज ने भी IIM शिलांग से एडमिशन ऑफर पाया है। गुजराती मीडियम से पढ़ाई करते हुए उन्होंने एचएल कॉलेज ऑफ कॉमर्स से बीकॉम में 78% अंक प्राप्त किए। CAT में उन्होंने 82.14 पर्सेंटाइल हासिल किया।

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एचएल कॉलेज से की B.Com, बनी MBA की चाहत

 शुरुआत में MBA के बारे में जानकारी नहीं थी, लेकिन साथियों को देखकर उन्होंने भी सपना देखा। सूरज ने कहा, "IIM तक पहुंचना सपना था, लेकिन अब यह हकीकत है। मेरी शिक्षा से मेरा पूरा परिवार बेहतर जीवन जी सकेगा।"

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अब लक्ष्य है, परिवार की ज़िंदगी बदलना

दोनों युवाओं का लक्ष्य अब सिर्फ डिग्री हासिल करना नहीं, बल्कि अपने संघर्षशील परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुधारना है। दीपेश और सूरज की ये यात्रा बताती है कि अगर हौसले मजबूत हों, तो कोई भी सपना दूर नहीं। यह सिर्फ मेहनत नहीं, बल्कि आत्मबल की जीत है।

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