Odisha train crash: 7 लाशों के बोझ तले दबा था 10 साल का मासूम, बड़े भाई ने उम्मीद नहीं छोड़ी, फिर चमत्कार हुआ और बच गई जान

ओडिशा ट्रेन हादसे ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस हादसे में 280 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि 1000 से अधिक घायल हैं। हादसे के बाद जिस हालत में तहस-नहस बोगियों में फंसे शव निकाले गए, उन्हें देखकर किसी की भी रूह कांप उठे। 

भुवनेश्वर. ओडिशा ट्रेन हादसे ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस हादसे में 280 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि 1000 से अधिक घायल हैं। हादसे के बाद जिस हालत में तहस-नहस बोगियों में फंसे शव निकाले गए, उन्हें देखकर किसी की भी रूह कांप उठे। हालांकि कुछ लोग घंटों बाद जीवित निकाले गए। जो मौत के मुंह से बाहर निकले, वे इसे किसी चमत्कार से कम नहीं मान रहे हैं।

बालासोर ट्रेन हादसे की इमोशन और शॉकिंग कहानियां

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ओडिशा के बहनागा बाजार में दु:खद ट्रेन घटना में 10 साल का देबाशीष पात्रा 7 शवों के वजन के नीचे फंसकर रह गया था। मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, चमत्कारिक ढंग से लड़के को उसके बड़े भाई और ग्रामीणों ने रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरानघंटों के बाद बचा लिया।

कक्षा 5 का छात्र देबाशीष और उसके परिवार के कुछ सदस्य कोरोमंडल एक्सप्रेस में ओडिशा के भद्रक की यात्रा कर रहे थे। इस मामले की जांच CBI को सौंपी गई है। दुर्घटना में देबाशीष के माथे और चेहरे पर कई चोटें आई हैं। ट्रेनों की टक्कर के बाद लड़के ने खुद को कई लाशों के वजन के नीचे फंसा हुआ पाया था। रेस्क्यू के बाद देबाशीष पात्रा को कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल ले जाया गया। देबाशीष को गंभीर चोटें आई हैं। उसे ठीक होने में टाइम लगेगा।

ओडिशा ट्रेन हादसा: उम्मीदों और हौसलों की कहानियां

ट्रेन हादसे के बाद ऐसी कई कहानियां सामने आ रही हैं, जो चौंकाती हैं। बहादुरी और उम्मीद की एक ऐसी ही दिल को छू लेने वाली कहानी में एक पिता ने यह मानने से इनकार कर दिया था कि उसका बेटा मर चुका है। पिता अपने बेटे को खोजता रहा। आखिरकार उसकी उम्मीद रंग लाई। उसका बेटा जिंदा निकला। अपने बेटे को खोजने पिता कोलकाता से 230 किमी बालासोर पहुंचा था।

बंगाल में हावड़ा में दुकान चलाने वाले हेलाराम मलिक बेटे विश्वजीत को शालीमार स्टेशन पर कोरोमंडल एक्सप्रेस में बैठाकर घर पहुंचे ही थे कि कुछ घंटे बाद हादसे की खबर मिली। उन्होंने तुरंत बेटे को मोबाइल पर कॉल किया। क्षतिग्रस्त बोगियों में फंसे बिस्वजीत तेज दर्द के बावजूद एक कमजोर आवाज के साथ कॉल का जवाब देने में कामयाब रहे। इस तरह एक पिता को पता चला कि उनका बेटा जीवित है। पिता ने तुरंत एक स्थानीय एम्बुलेंस चालक पलाश पंडित से संपर्क किया। हेलाराम और उनके बहनोई दीपक दास तुरंत 230 किमी दूर दुर्घटनास्थल पहुंचे।

बता दें कि 2 जून की शाम 7.20 बजे बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस, शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस एक मालगाड़ी से टकरा गई थी। उसी समय इससे यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस भी आकर भिड़ गई थी। यानी तीन ट्रेनें आपस में टकराई थीं।

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