जागो ग्राहक जागो: मेडिक्लेम के लिए 24 घंटे तक अस्पताल में भर्ती रहना अनिवार्य नियम नहीं है, उपभोक्ताओं के हित में 2 बड़े फैसले

जागरुकता के अभाव में अकसर लोगों को एक्सीडेंट और मेडिक्लेम का पैसा नहीं मिल पाता है। ये दो खबरें आपको जानना ही चाहिए, ताकि अगर दुर्भाग्यवश आपके या परिवार के साथ कुछ ऐसा कुछ घटे, तब इंश्योरेंस कंपनी से अपना क्लेम वसूला जा सके।

Amitabh Budholiya | Published : Mar 15, 2023 4:13 AM IST / Updated: Mar 15 2023, 09:44 AM IST

वडोदरा/मुंबई. जागरुकता के अभाव में अकसर लोगों को एक्सीडेंट और मेडिक्लेम का पैसा नहीं मिल पाता है, जबकि इंश्योरेंस कंपनियां क्लेम देने से इनकार नहीं कर सकती हैं। ये दो खबरें आपको जानना ही चाहिए, ताकि अगर दुर्भाग्यवश आपके या परिवार के साथ ऐसा कुछ घटे, तब इंश्योरेंस कंपनी से अपना क्लेम वसूला जा सके।

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कन्ज्यूमर फोरम ने लोगों के हित में एक बड़ा फैसला सुनाया है। इसमें कहा गया है कि जरूरी नहीं है कि कोई व्यक्ति 24 घंटे ही अस्पताल में भर्ती रहा हो, तब ही वो मेडिक्लेम का दावा कर सकता है। वड़ोदरा के कंज्यूमर फोरम ने कहा कि नई तकनीक आने के बाद कई बार मरीजों का इलाज कम समय में या अस्पताल में भर्ती किए बिना भी संभव होने लगा है। ऐसे में क्लेम देने से मना नहीं किया जा सकता है।

दरअसल, वड़ोदरा के रहने वाले रमेश चंद्र जोशी ने 2017 में नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। कंपनी ने उनका मेडिक्लेम देने से मना कर दिया था। जोशी की पत्नी को वड़ोदरा के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लेकिन उन्हें अगले ही दिन यानी 24 घंटे से पहले डिस्चार्ज कर दिया गया। जोशी ने 44,468 रुपये का मेडिकल क्लेम दायर किया था। लेकिन कंपनी ने यह कहकर उसे खारिज कर दिया कि नियम के तहत मरीज का अस्पताल में 24 घंटे तक भर्ती रहना जरूरी है।

इसके बाद जोशी ने उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराई थी। जोशी द्वारा कन्ज्यूमर कोर्ट में पेश डॉक्यूमेंट के अनुसार, उनकी पत्नी को 24 नवंबर, 2016 की शाम 5.38 बजे अस्पताल में एडमिट कराया गया था। 25 नवंबर को अगले दिन शाम 6.30 बजे उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया। फोरम ने बीमा कंपनी को आदेश दिया कि वह दावा खारिज होने की तारीख से 9% ब्याज के साथ जोशी को 44,468 रुपये का भुगतान करे।

यह मामला एक्सीडेंट क्लेम से जुड़ा है। अकसर इंश्योरेंस कंपनियां एक्सीडेंट के कारणों के आधार पर क्लेम देने से मना कर देती हैं। पिछले दिनों बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी को एक कार दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति के परिवार को 1.25 करोड़ रुपए का मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। बीमा कंपनी ने 'एक्ट ऑफ गॉड-Act of God' क्लोज का हवाला देते हुए क्लेम देने से इनकार कर दिया था।

25 अक्टूबर, 2010 को पुणे से मुंबई जाते समय एक कार दुर्घटना में मकरंद पटवर्धन की मौत हो गई थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मकरंद तेज गति से गाड़ी चला रहे थे। उनकी कार का टायर फट गया, जिससे स्पिन कंट्रोल से बाहर हो गई और खाई में जा गिरी।

कंपनी ने तर्क दिया कि मुआवजे की राशि अत्यधिक थी, अदालत को यह समझाने की कोशिश की गई कि टायर फटना एक 'ईश्वर का कार्य-Act of God' था और यह मानवीय लापरवाही के कारण नहीं हुआ था। 'एक्ट ऑफ गॉड' क्लॉज के तहत आने वाली घटनाएं आमतौर पर बीमा कंपनियों द्वारा कवर नहीं की जाती हैं। जैसे-भूकंप आदि कोई प्राकृतिक आपदा। क्लिक करके पढ़ें पूरी डिटेल्स

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