गुजरात में 200 साल की परंपराः साड़ी पहनकर महिलाओं की तरह गरबा करते हैं पुरुष

गुजरात में नवरात्रि के दौरान गरबा एक खास आकर्षण होता है, लेकिन अहमदाबाद के एक गांव में पुरुष भी साड़ी पहनकर गरबा करते हैं। 200 साल पुरानी इस परंपरा के पीछे एक शाप की कहानी है।

देशभर में नवरात्रि (Navratri celebration) की धूम मची हुई है। नवरात्रि में दुर्गा पूजा (Durga Puja) के साथ-साथ डांडिया, गरबा नृत्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। कर्नाटक समेत सभी राज्य अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार इस त्योहार को मना रहे हैं। नवरात्रि का नाम आते ही सबसे पहले गुजरात का गरबा याद आता है। हर साल नवरात्रि के नौ दिन गरबा होता है। गुजरात की राजधानी अहमदाबाद पूरी तरह रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा उठती है। छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर कोई इस त्योहार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है। गरबा में लोग थिरकते हैं। लेकिन गुजरात के एक गांव में गरबा के लिए चोली खरीदने वालों में पुरुष भी शामिल हैं। वहां के पुरुष, महिलाओं की तरह साड़ी पहनकर, सज-धज कर गरबा नृत्य (Garba Dance) करते हैं। 

गुजरात की राजधानी अहमदाबाद के शाहपुर इलाके में साधु माता गली और अंबा माता मंदिर में यह खास गरबा होता है। यहां नवरात्रि के आठवें दिन यानी अष्टमी को रात में सभी पुरुष स्त्री का वेश धारण कर, साड़ी पहनकर गरबा नृत्य करते हैं। इस समुदाय में करीब 1000 लोग हैं। मंदिर में, गली-गली में गरबा नृत्य करते हैं। 

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200 सालों से चली आ रही है ये परंपरा : पुरुषों द्वारा महिलाओं के कपड़े और साड़ी पहनकर गरबा खेलने की परंपरा करीब 200 सालों से चली आ रही है। साड़ी पहनकर डांस करने के पीछे एक खास वजह है। माना जाता है कि बरोट समुदाय के पुरुष साधुबेन नाम की एक महिला द्वारा शापित थे। उसी प्रायश्चित के तौर पर गरबा होता है। यह कहानी मुगलों के भारत पर राज करने के समय की है। साधुबेन नाम की महिला पर मुगलों की बुरी नजर थी। मुगल बादशाह उसे अपनी बनाना चाहता था। साधुबेन ने खुद को मुगलों से बचाने के लिए बरोट समुदाय से मदद मांगी थी। दुर्भाग्य से बरोट समुदाय के पुरुष उसे मुगलों के हाथों से नहीं बचा सके। इससे उसका बच्चा मर गया। गुस्से में साधुबेन ने बरोट समुदाय के पुरुषों को श्राप दे दिया। उसने श्राप दिया कि आने वाली पीढ़ियां कायर होंगी। इसके बाद उसने आत्महत्या कर ली।  

 

इस घटना के बाद बरोट समुदाय के लोगों में दहशत फैल गई। आत्मा को शांति देने और श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए अहमदाबाद में उनका मंदिर बनवाया गया। साथ ही इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए वे नवरात्रि में साड़ी पहनकर गरबा खेलते हैं। इसे शेरी गरबा कहा जाता है। इस परंपरा को देखने के लिए शहरी इलाकों से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। आम तौर पर, महिलाओं के कपड़े पहनने वाले पुरुषों को नीची नजर से देखा जाता है। लेकिन बरोट समुदाय के पुरुष इसे महिलाओं के प्रति विनम्रता और सम्मान का प्रतीक मानते हैं। मान्यताओं के अनुसार, शेरी गरबा करने से व्यापार में उन्नति, अच्छा स्वास्थ्य, स्वस्थ बच्चे का जन्म जैसी तमाम मनोकामनाएं पूरी होती हैं। हर साल की तरह इस साल भी गरबा होगा और इसकी तैयारी चल रही है। 

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