झारखंड में फिर से JMM का परचम, हेमंत सोरेन की वापसी, ये रहे जीत के बड़े कारण

राजनीतिक उथल-पुथल के बीच झारखंड में JMM गठबंधन ने फिर से बहुमत हासिल किया है। हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद भी जनता ने उन्हें समर्थन दिया, जिससे बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा।

रांची: पिछले एक साल में भारी राजनीतिक उथल-पुथल, सीएम हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी जैसी घटनाओं से सुर्खियों में रहे झारखंड में राज्य के मतदाताओं ने एक बार फिर मौजूदा सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस, राजद गठबंधन का हाथ थाम लिया है। राज्य विधानसभा की 81 सीटों पर हुए चुनाव के नतीजे शनिवार को घोषित हुए, जिसमें जेएमएम के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 50 से अधिक सीटें जीतकर फिर से सत्ता की कुर्सी हासिल कर ली है।

जेएमएम-कांग्रेस-राजद के लिए यह पिछले प्रदर्शन से बेहतर है। इसके साथ ही मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार किए गए और हाल ही में जमानत पर रिहा होकर चुनाव प्रचार की कमान संभालने वाले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बड़ी जीत मिली है। वहीं राज्य में सत्ता हासिल करने का बीजेपी का सपना टूट गया है। राज्य में बीजेपी के पास सीएम चेहरा बनने लायक स्थानीय नेतृत्व की कमी, विकास के मुद्दे को दूसरी प्राथमिकता देकर सिर्फ़ बांग्ला घुसपैठियों के मुद्दे पर प्रचार करना भारी पड़ा।

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घुसपैठिये बनाम आदिवासी कार्ड 

इस बार के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी नेताओं ने पड़ोसी देश बांग्लादेश से झारखंड में बढ़ रही अवैध घुसपैठ, घुसपैठ को जेएमएम सरकार का समर्थन जैसे मुद्दों को प्रमुख हथियार बनाया था। अवैध घुसपैठिये राज्य की ज़मीन, महिलाओं और खाने-पीने की चीज़ें हड़प रहे हैं, ऐसा कहकर बीजेपी लगातार हमलावर रही। साथ ही सत्ता में आने पर अवैध घुसपैठियों द्वारा आदिवासियों की ज़मीन पर कब्ज़ा रोकने के लिए क़ानून, आदिवासी महिलाओं की शादी के बाद भी ज़मीन उनके पास रहे, इसके लिए क़ानून बनाने का वादा किया था। इसके अलावा अवैध घुसपैठ रोकने के लिए ज़रूरी कदम उठाने का भी भरोसा दिलाया था।

दूसरी तरफ़, जेएमएम ने आदिवासी कार्ड का जमकर इस्तेमाल किया। आदिवासी नेता हेमंत सोरेन को बीजेपी ने गिरफ्तार किया है, ऐसा आरोप लगाया। साथ ही आदिवासी अस्मिता को प्रचार में इस्तेमाल किया। इसके अलावा महिलाओं को 1000 रुपये मासिक आर्थिक मदद देने वाली मुख्यमंत्री मैय्या सम्मान योजना का भी खूब प्रचार किया। आखिरकार राज्य की जनता ने अवैध घुसपैठियों के बजाय आदिवासी अस्मिता और मुफ़्त योजनाओं के पक्ष में वोट दिया, ऐसा लगता है।

महिलाओं की ताकत: राज्य के 81 विधानसभा क्षेत्रों में से 68 में इस बार महिला मतदाताओं ने ज़्यादा संख्या में वोट डाले। मासिक आर्थिक मदद योजना का लाभ पाने वाली महिलाओं ने बड़ी संख्या में जेएमएम गठबंधन को वोट दिया, जिससे पार्टी फिर से सत्ता में आई है, ऐसा कहा जा रहा है।

लोकतंत्र की परीक्षा में पास हुए


हम झारखंड में लोकतंत्र की परीक्षा पास कर चुके हैं। चुनाव के बाद हम अपनी लोकतांत्रिक रणनीति को अंतिम रूप देंगे। इस शानदार प्रदर्शन के लिए मैं जनता का आभार व्यक्त करता हूँ। झारखंड अपनी सरकार, अपना राज्य बनाने के लिए तैयार है, ऐसा जेएमएम प्रमुख और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने कहा है।

जीतने वाले प्रमुख नेता
हेमंत सोरेन
चंपई सोरेन
स्टीफन मरांडी
बाबूलाल मरांडी
कल्पना सोरेन

फीनिक़्स की तरह उठे हेमंत सोरेन

झारखंड के मौजूदा सीएम हेमंत सोरेन भ्रष्टाचार के मामले में जेल गए थे, लेकिन अब जीत के साथ राजनीतिक रूप से दोबारा उभरे हैं। मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तारी तय होते ही 2023 में हेमंत सोरेन ने सीएम पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। फिर पार्टी के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन को सीएम बनाया गया था। वहीं सोरेन के भाई की पत्नी सीता सोरेन के बीजेपी में शामिल होने को राज्य में पार्टी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा था। लेकिन पिछले जुलाई में जमानत मिलने के बाद जेल से बाहर आकर फिर से सीएम पद संभालने वाले हेमंत सोरेन ने पार्टी की लोकप्रिय योजनाओं, आदिवासी अस्मिता का प्रमुखता से प्रचार करके जेएमएम गठबंधन को फिर से सत्ता में लाने में कामयाबी हासिल की है। हेमंत के प्रति सहानुभूति ने भी जीत में भूमिका निभाई।

झारखंड में जेएमएम-कांग्रेस की जीत क्यों? बीजेपी की हार क्यों?


बीजेपी ने यहाँ बांग्ला घुसपैठियों के मुद्दे को एजेंडा बनाया था। लेकिन सांप्रदायिक भावनाओं को ज़्यादा भड़काना मददगार नहीं होता, यह साबित हुआ।
सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मामलों में जेल जाने के बावजूद हेमंत सोरेन जीते हैं। कुछ मामलों में रणनीतियाँ ही उल्टी पड़ जाती हैं, इसका यह उदाहरण है। जेल जाने वाले सोरेन को सहानुभूति मिली। इससे उनकी जीत में मदद मिली।


आदिवासियों और दलितों का विश्वास जीतना इतना आसान नहीं है, यह बीजेपी को समझ नहीं आया, यह बीजेपी की हार का एक कारण है। बीजेपी के पास सीएम उम्मीदवार नहीं था। छोटे राज्यों को मज़बूत स्थानीय नेताओं की ज़रूरत होती है। दिखावटी नेता काम नहीं करते, यह साबित हुआ।

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