कई वर्षों से नहीं हुई इस गांव के किसी लड़के की शादी, वजह जानकर हो जाएंगे हैरान...बच्चों को लेकर मायके चली जाती हैं महिलाएं

यदि आपको गांवों में बसने वाले उसी भारत की दुर्दशा देखनी हो तो जमशेदपुर जिला मुख्यालय से 100 किमी दूर बहरागोड़ा प्रखंड की खंडामौदा पंचायत के बड़ाडहर गांव (Baradahar village) आइए। गांव तक पहुंचने के लिए आपको दो किमी की पदयात्रा करनी पड़ेगी।

जमशेदपुर। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत गांवों में बसता है। यदि आपको गांवों में बसने वाले उसी भारत की दुर्दशा देखनी हो तो जमशेदपुर जिला मुख्यालय से 100 किमी दूर बहरागोड़ा प्रखंड की खंडामौदा पंचायत के बड़ाडहर गांव (Baradahar village) आइए। गांव तक पहुंचने के लिए आपको दो किमी की पदयात्रा करनी पड़ेगी। गांव में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। इसी वजह से कई वर्षों से गांव के किसी लड़के की शादी नहीं हुई है। इस गांव को अब कुंवारों का गांव (Kunwaron Ka Gaon) कहा जाने लगा है।

बारिश से पहले ग्रामीण घरों में इकट्ठा करते हैं राशन

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आलम यह है कि कोई भी पिता अपनी बेटी की शादी इस गांव में नहीं करना चाहता है। कुछ युवक गांव के बाहर निकले और शादी करने के बाद वहीं रह गए। बारिश के मौसम में यहां से गुजरने वाली खाल नदी का जलस्तर इतना बढ जाता है कि पूरा गांव एक टापू की मानिंद दिखता है। ग्रामीण अपने घरों में कैद हो जाते हैं। आपको जानकर और हैरानी होगी कि बारिश से पहले ग्रामीण अपने घरों में राशन इकट्ठा करते हैं।

पूरे साल मुश्किलों में घिरे रहते हैं ग्रामीण

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बड़ाडहर गांव के लोग पूरे साल मुश्किलों में घिरे रहते हैं। गांव में 20 परिवारों में लगभग 215 लोग रहते हैं। वैसे कहने के लिए गांव में एक सरकारी चापाकल है, चार साल पहले मुखिया निधि से सोलर जलमीनार भी बनाया गया है, लेकिन चापाकल बेकार हो गया है। पीने के पानी के लिए भी ग्रामीण जद्दोजहद करते हैं। गांव से 500 मीटर दूर पीने के पानी के लिए खाल नदी तक जाते हैं। नदी में एक कुआं खोदा गया है। उसी से ग्रामीण पानी ले जाते हैं। बारिश के मौसम में तो पगडंडियां भी नहीं दिखाई देती हैं।

दूल्हे को भी दो किलोमीटर पैदल चलकर आना पड़ता है गांव

यदि बड़ाडहर गांव में लड़की की शादी का आयोजन हो तो दूल्हे को भी दो किलोमीटर पैदल चलकर गांव तक आना पड़ता है। यदि कोई बीमार पड़ जाए तो एम्बुलेंस तक पहुंचाने के लिए उसे खटिया के सहारे ले जाया जाता है। गांव में न ही उज्ज्वला गैस योजना का लाभ ग्रामीणों को मिल पा रहा है और न ही स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय का। अब भी ग्रामीण खुले में ही शौच करते हैं। बारिश के मौसम नजदीक आते ही महिलाएं अपने बच्चों को लेकर मायके चली जाती है। यदि किसी परिवार में समारोह का आयोजन भी किया जाता है तो मेहमान दिन भर रहते हैं और रात होने से पहले निकल जाते हैं। गांव में रात में कोई मेहमान रूकना नहीं चाहता है।

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