
Ranchi News: झारखंड उच्च न्यायालय ने राज्य के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल रिम्स (राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान) में डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के रिक्त पदों पर चार सप्ताह के भीतर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है। मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने रिम्स में व्याप्त अव्यवस्था को लेकर दायर जनहित याचिका पर बुधवार को लगातार दूसरे दिन सुनवाई करते हुए राज्य सरकार और रिम्स निदेशक से कई सवालों के जवाब मांगे।
अदालत के आदेश के आलोक में राज्य के स्वास्थ्य सचिव और रिम्स निदेशक व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए। झारखंड उच्च न्यायालय ने स्वास्थ्य सचिव से सवाल किया कि जब सरकार समय-समय पर रिम्स को धनराशि जारी करती है, तो उसका सही उपयोग क्यों नहीं हो रहा है? खर्च न हो पाने वाली राशि की निगरानी और जवाबदेही क्यों तय नहीं की जा रही है?
इस पर सचिव ने जवाब दिया कि रिम्स एक स्वायत्त संस्थान है और संचालन समिति के निर्णय के अनुसार ही फंड का उपयोग किया जाता है। अदालत ने निदेशक डॉ. राजकुमार से पूछा कि आपके योगदान के बाद अब तक सरकार से कितनी राशि प्राप्त हुई, उससे कितने उपकरण और मशीनें खरीदी गईं, कितना फंड वापस की किया गई और एमआरआई जैसी आवश्यक मशीनें अभी तक क्यों नहीं खरीदी गईं? इन सभी बिंदुओं पर उन्हें 7 अगस्त तक हलफनामे के माध्यम से विस्तृत जानकारी देने का निर्देश दिया गया है। अदालत ने उन्हें अगली तारीख पर व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का भी निर्देश दिया है।
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सुनवाई के दौरान यह मामला भी उठा कि कई डॉक्टर नॉन-प्रैक्टिसिंग अलाउंस (एनपीए) ले रहे हैं, फिर भी निजी प्रैक्टिस में लगे हुए हैं। इस पर अदालत ने ऐसे डॉक्टरों की बायोमेट्रिक उपस्थिति रिपोर्ट तलब की है और यह भी पूछा है कि अब तक इस पर क्या कार्रवाई की गई है या भविष्य में क्या योजना है। यह जनहित याचिका ज्योति शर्मा द्वारा दायर की गई है, जिसमें रिम्स में लंबे समय से रिक्त पदों पर नियुक्ति न होने और आवश्यक चिकित्सा उपकरणों की कमी का मुद्दा उठाया गया है।
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