झारखंड में घुसपैठ: क्या लागू होगा NRC? हाईकोर्ट मामले में गंभीर

NRC in Jharkhand, Bangladeshi Infiltration Case: झारखंड हाईकोर्ट में बांग्लादेशी घुसपैठ पर सुनवाई के दौरान NRC लागू करने की मांग उठी है। जानिए क्या है यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन बिल। क्या है झारखंड में घट रही आदिवासियों का पूरा मामला।

Anita Tanvi | Published : Sep 13, 2024 4:11 AM IST / Updated: Sep 13 2024, 09:43 AM IST

रांची: बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में बड़ी सुनवाई हुई जिसमें घुसपैठियों की पहचान के लिए NRC लागू करने की मांग उठ रही है। झारखंड के साहिबगंज, पाकुड़, दुमका, गोड्डा और जामताड़ा जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण जनसंख्या के असंतुलन पर हाईकोर्ट ने जनहित याचिका पर गंभीर रुख अपनाया है। सुनवाई के दौरान एक्टिंग चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ में केंद्र की ओर से शपथ पत्र दायर किया गया। केंद्र ने बताया कि 2011 तक इस क्षेत्र में मुसलमानों की जनसंख्या में औसतन 12 प्रतिशत और कुछ जगहों पर 35 प्रतिशत तक की वृद्धि हो चुकी है।

संताल परगना में आदिवासियों की संख्या घटी, एनआरसी की जरूरत

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1951 से 2011 के बीच देश की जनसंख्या में औसतन साढ़े चार प्रतिशत की वृद्धि हुई है। लेकिन संताल परगना में आदिवासियों की जनसंख्या 42 प्रतिशत से घटकर मात्र 28 प्रतिशत रह गई है। केंद्र ने कहा है कि यह बेहद गंभीर स्थिति है और एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स बिल) की जरूरत है ताकि घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजा जा सके।

एनआरसी (NRC) क्या है? 

एनआरसी, यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन, एक ऐसा दस्तावेज है जिसमें देश के सभी वैध नागरिकों की जानकारी दर्ज होती है। इसकी शुरुआत 2013 में सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में असम राज्य से हुई थी। फिलहाल यह सिर्फ असम में लागू है, बाकी राज्यों में नहीं।

एनआरसी में नाम शामिल करने के लिए क्या करना होगा?

 एनआरसी में शामिल होने के लिए नागरिकों को यह साबित करना होगा कि उनके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत में आकर बस गए थे। असम में इसे खासतौर पर अवैध बांग्लादेशियों की पहचान करने और उन्हें बाहर निकालने के लिए लागू किया गया है।

केंद्र और राज्य की जिम्मेदारी 

केंद्र सरकार ने कोर्ट में स्पष्ट किया कि घुसपैठियों पर कार्रवाई करने का अधिकार राज्य सरकार के पास भी है। झारखंड सरकार को इसके लिए हर संभव सहायता देने को केंद्र तैयार है। वहीं यूआईडीएआई ने बताया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं हो सकता, यह सिर्फ पहचान का साधन है।

हाईकोर्ट का सख्त रुख 

अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि यह घुसपैठ और भूमि कब्जे से जुड़ा संवेदनशील मामला है, जिसे गंभीरता से जांचने की जरूरत है। झारखंड और केंद्र सरकार से अधिकारियों की समिति बनाने के लिए कहा गया है। अगली सुनवाई 17 सितंबर को होगी।

जनसंख्या में बदलाव और धर्मांतरण की साजिश 

इस मामले में हस्तक्षेप करने वालों ने बताया कि संताल परगना क्षेत्र में आदिवासियों की संख्या में भारी गिरावट और डेमोग्राफी में बदलाव साफ दिख रहा है। बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए फर्जी वोटर आईडी, आधार कार्ड और दस्तावेज तैयार करवाने के लिए एक संगठित सिंडिकेट सक्रिय है। प्रार्थी ने याचिका में बताया कि बांग्लादेशी घुसपैठ और आदिवासियों का धर्मांतरण एक सुनियोजित साजिश के तहत हो रहा है, जिससे इस क्षेत्र की डेमोग्राफी तेजी से बदल रही है।

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