पांच साल से कर्नाटक की गलियों में भटक रहे एक शख्स को आखिरकार उसका आशियाना मिल गया। शख्स मानसिक रूप से अस्वस्थ था, ठीक से बोल नहीं पा रहा था। पहचान में भाषा की दिक्कत आड़े आ रही थी।
रांची। पांच साल से कर्नाटक की गलियों में भटक रहे एक शख्स को आखिरकार उसका आशियाना मिल गया। शख्स मानसिक रूप से अस्वस्थ था, ठीक से बोल नहीं पा रहा था। पहचान में भाषा की दिक्कत आड़े आ रही थी। एक स्थानीय शख्स ने युवक को तीन साल से ज्यादा समय तक रहने का ठिकाना दिया। गूगल में उसकी भाषा और टोन को सर्च करते रहें। आखिरकार मानसिक रूप से अस्वस्थ युवक का झारखंड के चाईबासा में निवास का पता चला। कर्नाटक से आए युवाओं ने इस शख्स को उसके घर पहुंचाया है।
गलियों में घूमते हुए पड़ी थी नजर
कर्नाटक की गलियों में घूमते हुए चाईबासा के रहने वाले मानसिक रूप से अस्वस्थ शख्स पर अब्दुल लतीफ की नजर पड़ी तो वह उसे अपने घर लाएं और डाक्टर को दिखाया, दवाएं दी। बीमार शख्स की हालत सुधरी तो उससे घर का पता पूछा। पर वह मुश्किल से कुछ बता पा रहा था। थोड़े समय बाद टूटे फूटे शब्दों में उसने कुछ बताया।
पहचान के लिए गूगल सर्च का लिया सहारा
स्थानीय युवकों ने झारखंड के युवक की पहचान के लिए गूगल सर्च का सहारा लिया। उसके भाषा और टोन की मदद से गूगल सर्च से पता चला कि मानसिक रूप से अस्वस्थ शख्स झारखंड के चाईबासा का निवासी है। यह जानकारी स्थानीय लोगों ने नजदीकी पुलिस स्टेशन में दी और पुलिसकर्मियों की मदद से युवक की पहचान हो पाई। फिर कर्नाटक के मोहम्मद जाबिर और प्रतीक ने युवक को उसके घर पहुंचाने की ठानी और दोनों युवक शनिवार को उसे लेकर कर्नाटक से रांची एयरपोर्ट पहुंचे।
मान-मनौव्व्ल के बार माना परिवार
यहां तक तो गनीमत थी। पर अब एक नई मुसीबत आन पड़ी। कर्नाटक से आए युवकों ने चाईबासा प्रशासन से सम्पर्क कर युवक के घर का पता जाना और उसे लेकर घर पहुंचे तो मानसिक रूप से अस्वस्थ युवक के घर वालों ने उसे अपनाने से इंकार कर दिया। काफी मान मनौव्वल के बाद वह लोग माने। कर्नाटक के युवाओं की लोग सराहना कर रहे हैं।