
रांची न्यूज: झारखंड अपनी समृद्ध संस्कृति और खूबसूरत प्राकृतिक नजारों के लिए पूरे देश में मशहूर है। यहां के आदिवासियों की अपनी अनूठी परंपराएं और खानपान है। रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा और पश्चिमी सिंहभूम समेत कई जिलों में आदिवासियों का एक खास व्यंजन है 'लाल चींटी की चटनी'। लाल चींटी की चटनी सर्दी-जुकाम से बचने में भी काफी मददगार है।
लाल चींटी की चटनी का स्वाद बेहद लजीज होता है। इसके साथ ही यह सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद है। पड़ोसी राज्य ओडिशा में इस चटनी को इसके अनोखे स्वाद और गुणों के लिए जीआई टैग भी मिल चुका है।
आदिवासी समाज के लोगों का मानना है कि ठंड के दिनों में अगर इस चींटी की चटनी को खाया जाए तो सर्दी नहीं लगेगी और भूख भी अच्छी लगेगी। इसमें टैक्टिक एसिड होता है, जो शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। करंज और साल के पेड़ों पर लाल चींटियां बनाती हैं अपना घर
रांची, जमशेदपुर और चाईबासा समेत अन्य जिलों के सुदूर इलाकों में रहने वाले कई आदिवासी परिवारों का यह पसंदीदा व्यंजन है। रांची से करीब 50 किलोमीटर दूर घने जंगलों में बसे गदरी गांव के आदिवासी लोगों का कहना है कि ठंड शुरू होते ही यहां साल और करंज के पेड़ों पर लाल चींटियां अपना घर बना लेती हैं। इनके घर चारों तरफ से पत्तों से ढके होते हैं, जो पेड़ की ऊंचाई पर बने होते हैं। गांव वालों को इस बात का पता तब चलता है, जब पेड़ पर चींटियां आना-जाना शुरू कर देती हैं।
आदिवासी समाज के लोग चींटियों के घरों को टहनियों से तोड़कर लाते हैं, फिर उन्हें एक बड़े बर्तन में हिलाते हैं, ताकि सभी चींटियां एक जगह इकट्ठा हो जाएं। फिर घर की महिलाएं इसे एक बड़े पत्थर के ओखली पर रखकर इसमें नमक, काली मिर्च, अदरक और लहसुन डालकर बहुत बारीक पीसती हैं। कुछ मिनट पीसने के बाद सारी लाल चींटियां मिश्रण में मिल जाती हैं। फिर सभी लोग अपने घरों से साल का पत्ता लाते हैं और उसमें चटनी रखकर बांटते और खाते हैं। गांव वालों का कहना है कि लाल चींटियां साल में एक बार ही पेड़ों पर आती हैं और उनके पूर्वज भी यही चटनी खाते थे।
आदिवासी समाज में मान्यता है कि लाल चींटियों की चटनी खाने से कई बीमारियां दूर होती हैं। सर्दी-खांसी के अलावा लाल चींटियों की चटनी एनीमिया, वजन बढ़ना, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से लड़ने में भी फायदेमंद है। यह चटनी कई पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसमें प्रोटीन, एंटीऑक्सीडेंट, कैल्शियम, आयरन, विटामिन और फाइबर पोषक तत्व पाए जाते हैं। यह हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत बनाने में मददगार है। इसके अलावा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर रोगों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ाती है।
आदिवासी मान्यता के अनुसार स्थानीय आदिवासी लोग पीलिया, मलेरिया और बुखार से निजात पाने के लिए लाल चींटियों के झुंड के पास भी जाते हैं। चींटी के काटने से बुखार का तापमान कम हो जाता है और चटनी भी बुखार कम करने में सहायक होती है।
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