
Rukmani Chhatarpur News: एक दर्दनाक और सोच को झकझोर देने वाली घटना छतरपुर जिले से सामने आई है। यहां रहने वाली 23 वर्षीय विवाहिता रुक्मणि सेन एक रहस्यमयी त्वचा रोग से जूझ रही है, जिसकी वजह से न सिर्फ पति ने बल्कि उसके अपने माता-पिता ने भी उससे रिश्ता तोड़ लिया।
रुक्मणि की शादी तीन साल पहले टीकमगढ़ निवासी ब्रजकिशोर सेन से हुई थी। शुरुआत में सबकुछ ठीक रहा, लेकिन डेढ़ साल बाद उसकी त्वचा पर तेज खुजली और शल्क जैसी परतें उतरने लगीं। बीमारी इस कदर बढ़ गई कि वह सामान्य जीवन जीने लायक भी नहीं रही।
बीमारी बढ़ती गई और इलाज के बावजूद कोई खास सुधार नहीं हुआ। रुक्मणि ने बताया कि उसका पति उसे ‘शापित’ मानने लगा और इसी अंधविश्वास में आकर उसने उसे छोड़ दिया। बाद में उसने दूसरी शादी भी कर ली।
पति से उम्मीद टूटने के बाद जब रुक्मणि अपने माता-पिता के घर पहुंची, तो वहां से भी उसे सहारा नहीं मिला। उल्टा उसके परिजनों ने उसे ‘मनहूस’ कहकर घर से मारपीट कर भगा दिया। अब वह अकेले इलाज के लिए दर-दर भटक रही है।
रुक्मणि को एक गंभीर स्किन डिसऑर्डर है जिसमें शरीर से परतदार त्वचा उतरने लगती है। कान, आंखें, हाथ-पैर, यहां तक कि आंतरिक अंगों तक पर असर हुआ है। डॉक्टरों के अनुसार इलाज में करीब 6 महीने का समय लग सकता है।
रुक्मणि ने रोते हुए कहा, "मेरे जख्मों पर दवाई लग जाएगी, शायद ये ठीक हो जाएं, लेकिन जो जख्म मेरे अपनों ने दिए हैं, उनका कोई इलाज नहीं।" उसने अपील की कि बीमारी से ज्यादा खतरनाक सामाजिक सोच है, जिसे बदलने की जरूरत है।
इस दर्दनाक कहानी के सामने आने के बाद एक स्थानीय NGO ने रुक्मणि के इलाज और रहने की व्यवस्था करने की पहल की है। जिला प्रशासन ने भी जांच के आदेश दिए हैं और महिला को अस्थायी राहत देने की बात कही है। सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांग है कि पति और मायके पक्ष पर कानूनी कार्रवाई हो।
रुक्मणि बताती हैं कि उसकी बीमारी एक स्किन डिसऑर्डर है जिसमें त्वचा शल्क की तरह उतरने लगती है। अब यह स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि कान, आंख, हाथ-पैर यहां तक कि आंतरिक अंगों से भी त्वचा निकल रही है। डॉक्टरों ने 6 महीने तक इलाज का समय बताया है, लेकिन जो घाव रिश्तों ने दिए हैं, उनका इलाज शायद कभी नहीं होगा।
रुक्मणि की यह दर्दनाक कहानी केवल उसकी नहीं, बल्कि उन हजारों महिलाओं की है जो बीमारी, सामाजिक धारणाओं और अंधविश्वासों का शिकार होती हैं। उसकी अपील है कि समाज को बीमारी नहीं, बल्कि अपनी सोच का इलाज करना चाहिए।
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