
Stunted Children in India: भारत में बाल विकास और पोषण को लेकर कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन जून 2025 के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की पोषण ट्रैकर रिपोर्ट ने हकीकत की जो तस्वीर पेश की है, वह चौंकाने वाली है। देश के कई जिलों में बचपन लंबाई में नहीं, बल्कि कुपोषण में बढ़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 63 जिलों में बौनेपन का स्तर बेहद चिंताजनक है।
महाराष्ट्र का नंदुरबार जिला इस रिपोर्ट में सबसे ऊपर है, जहां 68.12% बच्चे बौनेपन से जूझ रहे हैं। ये आंकड़े केवल संख्याएं नहीं हैं, बल्कि सिस्टम की असफलता और वर्षों से चले आ रहे पोषण अभाव का जीवंत प्रमाण हैं। नंदुरबार के अलावा झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम (66.27%), उत्तर प्रदेश के चित्रकूट (59.48%), मध्य प्रदेश के शिवपुरी (58.20%) और असम के बोंगाईगांव (54.76%) में भी स्थिति भयावह है।
विशेषज्ञों का मानना है कि दीर्घकालिक और बार-बार होने वाला कुपोषण बच्चों में बौनेपन का प्रमुख कारण है। लेकिन केवल भोजन की कमी ही दोषी नहीं है-स्वच्छता की कमी, मां की पोषण स्थिति, स्वास्थ्य सेवाओं की गैरमौजूदगी और जागरूकता की कमी भी इस संकट को गहराते हैं।
पोषण ट्रैकर के अनुसार, उत्तर प्रदेश के 34 जिलों में बौनेपन की दर 50% से ज्यादा है। यह आंकड़ा बताता है कि भारत की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य में बाल स्वास्थ्य योजनाएं केवल कागज़ पर ही चल रही हैं। मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार और असम भी इस लिस्ट में शामिल हैं।
नंदुरबार में ही 48.26% बच्चे कम वजन के पाए गए। मध्य प्रदेश के धार (42%), खरगोन (36.19%) और गुजरात के डांग (37.20%) में भी स्थिति बेहद नाजुक है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों में बौनेपन की औसत दर 37.07% है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार, 0-6 वर्ष के 8.19 करोड़ बच्चों में 35.91% बच्चे बौने और 16.5% कम वजन के हैं। हालांकि बीते 19 वर्षों में बौनेपन की औसत दर 42.4% से 29.4% तक घटी है, लेकिन ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में यह दर अब भी नेशनल इमरजेंसी जैसी है। भारत का भविष्य बौना नहीं होना चाहिए। अब जरूरी है कि सरकार केवल रिपोर्ट न जारी करे, बल्कि जमीनी बदलाव के लिए ठोस एक्शन ले।
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