
Government Job Struggle: यह कहानी है दमोह जिले के मड़ियादो गांव निवासी परमलाल कोरी की, जिन्होंने 17 वर्षों तक सरकारी नौकरी पाने के लिए न्याय की लड़ाई लड़ी। लेकिन दुर्भाग्यवश, नियुक्ति पत्र मिलने के सिर्फ तीन दिन पहले ही उनकी मृत्यु हो गई।
परमलाल कोरी ने 1988 में शिवपुर के एक स्कूल में अनुदेशक के रूप में सेवाएं दी थीं। तीन साल तक सेवा देने के बाद स्कूल बंद हो गया। कुछ अनुदेशकों को तो गुरुजी की नियुक्ति मिली, लेकिन परमलाल जैसे कई लोग छूट गए।
2008 में शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी उन्हें नियुक्ति नहीं मिली। उन्होंने 2008 में जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की और लगातार 17 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी।
जनवरी 2025 में उच्च न्यायालय ने परमलाल के पक्ष में निर्णय दिया और उन्हें संविदा शिक्षक वर्ग-3 में नियुक्त करने का आदेश दिया गया। लेकिन नियुक्ति पत्र मिलने से ठीक तीन दिन पहले, 12 अप्रैल को उनका हृदयगति रुकने से निधन हो गया।
15 अप्रैल को जिला शिक्षा केंद्र ने जब परमलाल को दस्तावेज सत्यापन के लिए बुलाया, तो उनके स्थान पर उनका बेटा शुभम पिता का मृत्यु प्रमाणपत्र लेकर पहुंचा। यह पल पूरे कार्यालय में गमगीन कर गया।
DPC दमोह एमके द्विवेदी ने स्पष्ट किया कि चूंकि नियुक्ति से पहले ही मृत्यु हो गई, इसलिए परिवार को कोई आर्थिक या सरकारी सहायता देने का प्रावधान नहीं बनता।
परमलाल कोरी की यह कहानी न केवल सिस्टम की जटिलताओं को उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि न्याय पाने में देरी कभी-कभी न्याय को ही असमर्थ बना देती है। उनका संघर्ष हमेशा याद किया जाएगा।
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