प्रसाद, अगरबत्ती और आंखों में आस… कलक्टर से अनोखे अंदाज में अरदास लगाने पहुंचा किसान

Published : May 28, 2025, 03:14 PM IST
Sagar farmer land dispute collector office

सार

 एक किसान पूजा की थाली, मिठाई और फूल-माला लेकर कलेक्टर कार्यालय पहुंचा। बोले—"भगवान के बाद अब आप ही आस हैं!" 2 साल से जमीन गायब, सुनवाई नहीं। क्या प्रसाद से पिघलेगा प्रशासन? ये विरोध था या भक्ति में छिपा संदेश? जांच के बाद क्या मिलेगा इंसाफ?

Sagar farmer land dispute: मध्य प्रदेश के सागर जिले में मंगलवार को कलेक्ट्रेट परिसर में उस समय हैरानी फैल गई, जब जनसुनवाई में एक किसान भगवान की तरह अफसरों को प्रसन्न करने के लिए पूजा की थाली, फूल-माला और मिठाई लेकर पहुंच गया। उसके इस कदम ने प्रशासन और मौजूद लोगों को चौंका दिया।

पूजा की थाली में क्या-क्या था?

किसान अजीत सिंह ठाकुर के हाथ में एक सजी-सजाई थाली थी जिसमें मिठाई, नारियल, अगरबत्ती, फूलों की माला और दीपक भी रखा गया था। ये कोई पूजा पंडाल नहीं, बल्कि सागर कलेक्टर का जनसुनवाई कक्ष था, जहां उसने यह "विनम्र विरोध" दर्ज कराया।

कौन है यह किसान और क्या है इसकी समस्या?

अजीत सिंह ठाकुर जैसीनगर तहसील के सत्ताढाना गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि उनकी कुल 9 एकड़ जमीन है, जिसमें से 4.50 एकड़ जमीन राजस्व रिकॉर्ड से अचानक "गायब" हो गई। उन्होंने पहले एसडीएम कोर्ट में गुहार लगाई और 2022 में उनके पक्ष में फैसला भी आया।

2 साल से लंबित है मामला, थक हारकर अपनाया ये तरीका

एसडीएम कोर्ट के आदेश के खिलाफ गांव के ही सूरज सिंह ने कलेक्टर के पास अपील की, जिससे आदेश निरस्त हो गया और मामला फिर एसडीएम न्यायालय में लंबित हो गया। दो साल से कोई कार्रवाई नहीं हुई। किसान ने कहा—"मैं मंदिरों में जैसे भगवान को प्रसन्न करने मिठाई-फूल चढ़ाता हूं, वैसे ही आज कलेक्टर को प्रसन्न करने आया हूं।"

पुलिस ने रोका, लेकिन पहुंच ही गया जनसुनवाई कक्ष

किसान जब कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंचा तो सुरक्षा में लगे पुलिस कर्मियों ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन वह पूजा की थाली के साथ जनसुनवाई में मौजूद कलेक्टर संदीप आर और एसपी विकास शहवाल तक पहुंच गया। अधिकारियों ने उसे बैठाकर उसकी बात सुनी और उचित जांच के निर्देश दिए।

क्या कहता है प्रशासन?

कलेक्टर ने किसान की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए राजस्व विभाग को मामले की दोबारा जांच कर जरूरी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। किसान की उम्मीद अब प्रशासन पर टिकी है कि शायद उसकी "प्रसाद वाली अर्जी" असर दिखाए। यह घटना प्रशासनिक उदासीनता के खिलाफ एक अलग तरह का सांकेतिक विरोध भी हो सकती है और एक आम किसान की बेबसी की भावुक तस्वीर भी। सवाल यह है—क्या अफसर "भगवान" बनकर इस किसान की फरियाद सुन पाएंगे?

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