सरकार ने बताया कि चीतों को देश की आबोहवा में बसाने में कुछ दिक्कतें हैं लेकिन चिंता करने जैसी कुछ नहीं है। सरकार चीतों को भारत में बसाने का हर संभव प्रयास कर रही है।
Supreme court hearing on Cheetah death:सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में कूनो नेशनल पार्क में चीतों की मौत के मामले में सुनवाई को बंद कर दी है। सोमवार को कोर्ट ने 9 चीतों के मौत के मामले में सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार की दलीलों को सुना। सरकार ने बताया कि चीतों को देश की आबोहवा में बसाने में कुछ दिक्कतें हैं लेकिन चिंता करने जैसी कुछ नहीं है। सरकार चीतों को भारत में बसाने का हर संभव प्रयास कर रही है। सरकार के तर्क से संतुष्ट सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सरकार से कोई सवाल पूछने का कोई कारण नहीं है।
केंद्र सरकार की क्या है चीतों की मौत पर दलील?
सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार ने बताया कि दुनिया के तमाम देशों में चीतों को एक जगह से दूसरी जगह पर शिफ्ट किए जाते हैं। जलवायु व तापमान की वजह से इनके जीवन पर संकट कई बार आ जा रही है। चीतों के बाड़े का ज्यादा तापमान भी कई बार इनकी मौत की वजह बन रही। नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के कम तापमान के मुकाबले यहां का तापमान अधिक है। इस वजह से भी उनकी मौत हो रही। हालांकि, दुनिया में चीतों की मृत्युदर से कम मृत्युदर भारत में है। अन्य जंगली जानवरों बाघ, तेंदुआों, जंगली सुअरों से भी इनको बचाना एक बड़ी चुनौती है। केंद्र ने कोर्ट को बताया कि इन वजहों के अलावा चीतों में इंफेक्शन और डिहाईड्रेशन से भी मौतें हो रही है। विदेशी एक्सपर्ट्स से सलाह ली जा रही है। कोर्ट को बताया कि हर साल औसतन 5 से 8 चीता शावक देश में पैदा होंगे। अगले पांच सालों में 12 से 14 चीते विदेशी धरती से मंगाए जाने हैं। सरकार ने एक आंकड़ा भी प्रस्तुत किया। बताया कि कूनो में अभी एक शावक और 14 चीते जीवित हैं।
1952 में चीता को देश से विलुप्त घोषित किया गया
भारत में चीतों को 1952 में विलुप्त घोषित किया गया था। इसके बाद देश में चीतों को बसाने की योजना को अंजाम दिया जाने लगा। बीते सालों में इस योजना में तेजी आई। मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से 20 चीतों को लाया गया था। इन चीतों ने चार शावकों को जन्म दिया। जिनमें से तीन शावकों की मौत हो गई। यही नहीं छह चीतों ने भी दम तोड़ दिया था। इसके बाद चीतों को बचाने के अभियान को लेकर चिंता हुई।
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