'हम पैसे देते हैं..' IIT Bombay की वायरल पोस्ट ने दिलाई 'मुन्नाभाई MBBS' की याद, क्या है मामला?

Published : Aug 28, 2025, 02:49 PM IST
IIT Bombay Viral Post

सार

आईआईटी बॉम्बे से जुड़ी एक वायरल पोस्ट में हाउसकीपर की दुर्दशा को बताया गया है। ये पोस्ट एलीट एकेडमिक इंस्टिट्यूशंस में अहंकार और सिविक सेंस की कमी को उजागर करती है। जहां कुछ स्टूडेंट "हम पैसे देते हैं" कहकर लोगों का अनादर करते हैं।

IIT Bombay Viral Post: आईआईटी बॉम्बे के स्टूडेंट रहे आरव रंगवानी की एक लिंक्डइन पोस्ट खूब वायरल हो रही है। इस पोस्ट में उन्होंने कैंपस में हुई एक परेशान करने वाली घटना को उजागर किया है। आरव ने अपनी पोस्ट में हाउसकीपर के साथ हुई बातचीत का ज़िक्र किया है, जिसमें वो स्टूडेंट्स से बार-बार बुनियादी स्वच्छता बनाए रखने के लिए रिक्वेस्ट करते हैं, लेकिन उनकी कोई नहीं सुनता। कुछ स्टूडेंट को जब टॉयलेट फ्लश करने या कचरे को सही जगह यानी डस्टबिन में फेंकने के लिए कहा गया तो उन्होंने बेहद गलत और घमंडी तरीके से जवाब देते हुए कहा- हम पैसे देते हैं। रंगवानी के मुताबिक, सफाईकर्मियों को लेकर स्टूडेंट के इस रवैये ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। बता दें कि ये वाकया फिल्म ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ के उस सीन की याद दिलाता है, जिसमें एक बुजुर्ग सफाईकर्मी से दुव्यर्वहार के बाद संजय दत्त उसे जादू की झप्पी देते हैं। 

आए दिन होने वाली दिक्कतों पर हाउसकीपर ने खुलकर की बात

आरव रंगवानी के मुताबिक, हाउसकीपर ने बताया कि कैसे स्टूडेंट्स उनके रेगुलर काम में लगातार परेशानियां खड़ी करते हैं और कई बार तो उनका अनादर करने से भी नहीं चूकते हैं।

  • हाउसकीपर ने बताया कि जब वो सफाई कर रहे होते हैं, तब भी कुछ स्टूडेंट्स टॉयलेट का इस्तेमाल करते हैं।
  • कूड़ेदानों में फेंका जाने वाला कचरा अक्सर वॉटर कूलर के ऊपर छोड़कर चले जाते हैं।
  • यूरिनल्स (मूत्रालयों) को स्टूडेंट फ्लश नहीं करते, जिसकी वजह से बदबू फैलती रहती है। टॉयलेट में पानी डाले बिना ही उनका इस्तेमाल किया जाता है।
  • खाली शराब की बोतलें खिड़कियों पर छोड़ दी जाती हैं। हाउसकीपर ने लाचारी जताते हुए कहा कि वो चाहे कितनी भी सफाई कर ले, लेकिन स्टूडेंट उसकी बातों को अनसुना कर देते हैं।
  • हाउसकीपर के मुताबिक, आज मैं साफ करुंगा और कल वो इसे फिर गंदा कर देंगे। अगर स्टूडेंट्स से को-ऑपरेट करने के लिए बोलो तो कहते हैं- "हम पैसे देते हैं।" इसके बाद मैं बेहद निराश हो गया और मजबूरन उन्हें बोलना ही बंद कर दिया।

क्या पैसे चुकाने से दुरुपयोग का अधिकार मिल जाता है?

आईआईटी बॉम्बे के स्टूडेंट्स का ये रवैया "हम पैसे देते हैं" वाकई एक चिंताजनक मानसिकता को दर्शाता है। क्या फीस या वेतन देने से संसाधनों के दुरुपयोग और कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार करने का अधिकार मिल जाता है? ये बात सही है कि पैसों के बदले आप सेवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आपको बेवजह अधिकार जताने और और किसी के अपमान का भी हक मिल गया है। इस तरह के रवैये से न केवल कर्मचारियों का मनोबल गिरता है, बल्कि आपसी सम्मान की उस संस्कृति को भी नुकसान होता है, जिसे संस्थान बनाए रखने की कोशिश करते हैं।

ये समस्या सिर्फ एक संस्थान तक सीमित नहीं

हम पैसे देते हैं...ये मानसिकता और इससे जुड़ी समस्याएं सिर्फ एक संस्थान तक ही सीमित नहीं हैं। देशभर के कई एक्स-स्टूडेंट्स ने अपने अनुभव साझा किए, जिसमें बताया कि किस तरह की दिक्कतें ज्यादातर देखने को मिलती हैं।

  • बिजली के स्विचबोर्ड टूटे हुए हैं और उनके अंदर पेन के ढक्कन फंसे हुए हैं।
  • हॉस्टलों में लिफ्ट और उनके शीशे टूटे हुए हैं।
  • स्टूडेंट कहते हैं- फीस दी है तो ऐसे ही वसूल करेंगे।
  • स्टूडेंट्स की ये हरकतें बताती हैं कि कैसे शिक्षित युवा भी कभी-कभी बुनियादी नागरिक जिम्मेदारी की पूरी तरह उपेक्षा करते हैं।

IIT बॉम्बे की वायरल पोस्ट पर कैसा है यूजर्स का रिएक्शन?

इस पोस्ट पर लोगों के तीखे रिएक्शन सामने आए हैं। कई लोगों ने इस तरह के व्यवहार पर गुस्सा और निराशा जताई। एक यूजर ने लिखा- आईआईटी में सो-कॉल्ड लोग इस एलीट एजुकेशन को लेकर कुछ ज्यादा ही घमंडी और खोखला अभिमान (सभी नहीं, लेकिन कई...) रखते हैं। मानवता पहले है। यहां तक कि हमें हॉस्टल वार्डन से शौचालय इस्तेमाल करने के बाद फ्लश करने का मेल भी मिला है। कुछ लोग ऐसे ही होते हैं, जिनके अंदर सिविक सेंस की कमी है। एक और यूजर ने लिखा- अगर आप सिक्योरिटी गार्ड और गेटकीपर्स से बात करें, तो उनकी कहानियां सुनकर भीतर तक हिल जाएंगे। उनके संघर्ष अनसुने रह जाते हैं, और उनकी गरिमा को अक्सर इग्नोर कर दिया जाता है।

जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए सिर्फ डिग्रियां होना नाकाफी

आईआईटी बॉम्बे की ये घटना बताती है कि केवल डिग्रियां ही किसी शख्स को जिम्मेदार नागरिक नहीं बनातीं। एकेडमिक एक्सीलेंस के साथ-साथ सफाई कर्मचारियों, गार्डों और सहायक कर्मचारियों के प्रति सम्मान होना भी बेहद जरूरी है। सच्ची शिक्षा ग्रेड या डिग्रियों में नहीं बल्कि सहानुभूति, विनम्रता और नागरिक भावना में झलकती है। इस बहस ने प्रमुख संस्थानों से न केवल एकेडमिक एक्सीलेंस पर फोकस करने बल्कि स्टूडेंट्स को मेहनत-मजदूरी का महत्व बताने के साथ ही कर्मचारियों के सम्मान और नागरिक जिम्मेदारी के प्रति संवेदनशील बनाने की भी मांग की है। रंगवानी ने आखिर में अपनी पोस्ट में लिखा भी है- हर वर्दी और नौकरी के पीछे एक इंसान छुपा है, जो सम्मान का हकदार है।

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