
IIT Bombay Viral Post: आईआईटी बॉम्बे के स्टूडेंट रहे आरव रंगवानी की एक लिंक्डइन पोस्ट खूब वायरल हो रही है। इस पोस्ट में उन्होंने कैंपस में हुई एक परेशान करने वाली घटना को उजागर किया है। आरव ने अपनी पोस्ट में हाउसकीपर के साथ हुई बातचीत का ज़िक्र किया है, जिसमें वो स्टूडेंट्स से बार-बार बुनियादी स्वच्छता बनाए रखने के लिए रिक्वेस्ट करते हैं, लेकिन उनकी कोई नहीं सुनता। कुछ स्टूडेंट को जब टॉयलेट फ्लश करने या कचरे को सही जगह यानी डस्टबिन में फेंकने के लिए कहा गया तो उन्होंने बेहद गलत और घमंडी तरीके से जवाब देते हुए कहा- हम पैसे देते हैं। रंगवानी के मुताबिक, सफाईकर्मियों को लेकर स्टूडेंट के इस रवैये ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। बता दें कि ये वाकया फिल्म ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ के उस सीन की याद दिलाता है, जिसमें एक बुजुर्ग सफाईकर्मी से दुव्यर्वहार के बाद संजय दत्त उसे जादू की झप्पी देते हैं।
आरव रंगवानी के मुताबिक, हाउसकीपर ने बताया कि कैसे स्टूडेंट्स उनके रेगुलर काम में लगातार परेशानियां खड़ी करते हैं और कई बार तो उनका अनादर करने से भी नहीं चूकते हैं।
आईआईटी बॉम्बे के स्टूडेंट्स का ये रवैया "हम पैसे देते हैं" वाकई एक चिंताजनक मानसिकता को दर्शाता है। क्या फीस या वेतन देने से संसाधनों के दुरुपयोग और कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार करने का अधिकार मिल जाता है? ये बात सही है कि पैसों के बदले आप सेवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आपको बेवजह अधिकार जताने और और किसी के अपमान का भी हक मिल गया है। इस तरह के रवैये से न केवल कर्मचारियों का मनोबल गिरता है, बल्कि आपसी सम्मान की उस संस्कृति को भी नुकसान होता है, जिसे संस्थान बनाए रखने की कोशिश करते हैं।
हम पैसे देते हैं...ये मानसिकता और इससे जुड़ी समस्याएं सिर्फ एक संस्थान तक ही सीमित नहीं हैं। देशभर के कई एक्स-स्टूडेंट्स ने अपने अनुभव साझा किए, जिसमें बताया कि किस तरह की दिक्कतें ज्यादातर देखने को मिलती हैं।
इस पोस्ट पर लोगों के तीखे रिएक्शन सामने आए हैं। कई लोगों ने इस तरह के व्यवहार पर गुस्सा और निराशा जताई। एक यूजर ने लिखा- आईआईटी में सो-कॉल्ड लोग इस एलीट एजुकेशन को लेकर कुछ ज्यादा ही घमंडी और खोखला अभिमान (सभी नहीं, लेकिन कई...) रखते हैं। मानवता पहले है। यहां तक कि हमें हॉस्टल वार्डन से शौचालय इस्तेमाल करने के बाद फ्लश करने का मेल भी मिला है। कुछ लोग ऐसे ही होते हैं, जिनके अंदर सिविक सेंस की कमी है। एक और यूजर ने लिखा- अगर आप सिक्योरिटी गार्ड और गेटकीपर्स से बात करें, तो उनकी कहानियां सुनकर भीतर तक हिल जाएंगे। उनके संघर्ष अनसुने रह जाते हैं, और उनकी गरिमा को अक्सर इग्नोर कर दिया जाता है।
आईआईटी बॉम्बे की ये घटना बताती है कि केवल डिग्रियां ही किसी शख्स को जिम्मेदार नागरिक नहीं बनातीं। एकेडमिक एक्सीलेंस के साथ-साथ सफाई कर्मचारियों, गार्डों और सहायक कर्मचारियों के प्रति सम्मान होना भी बेहद जरूरी है। सच्ची शिक्षा ग्रेड या डिग्रियों में नहीं बल्कि सहानुभूति, विनम्रता और नागरिक भावना में झलकती है। इस बहस ने प्रमुख संस्थानों से न केवल एकेडमिक एक्सीलेंस पर फोकस करने बल्कि स्टूडेंट्स को मेहनत-मजदूरी का महत्व बताने के साथ ही कर्मचारियों के सम्मान और नागरिक जिम्मेदारी के प्रति संवेदनशील बनाने की भी मांग की है। रंगवानी ने आखिर में अपनी पोस्ट में लिखा भी है- हर वर्दी और नौकरी के पीछे एक इंसान छुपा है, जो सम्मान का हकदार है।
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