Who is Dr. Ganesh Rakh: पुणे स्थित मेडिकेयर हॉस्पिटपल फाउंडेशन के प्रमुख डॉक्टर गणेश राख पिछले 18 साल से बेटियों के लिए वो काम कर रहे हैं, जिसे जान हर कोई उन्हें फरिश्ता बता रहा है। आखिर क्या है उनका ये काम, जिसकी तारीफ आनंद महिंद्रा ने भी की है।
Pune's Famous Dr. Ganesh Rakh: एक तरफ जहां आज भी भ्रूण हत्या और कोख में ही बेटियों को मारने के मामले सामने आते रहते हैं, वहीं, दूसरी ओर एक ऐसा इंसान भी है, जो बेटियों के लिए पूरी तरह समर्पित है। लोग इस शख्स को फरिश्ता कहते हैं। यहां तक कि इनके काम से खुद अरबपति आनंद महिन्द्रा भी काफी इंस्पायर हैं और उन्हें अपनी प्रेरणा मानते हैं। आखिर कौन है ये शख्स और बेटियों के लिए ऐसा क्या कर रहा...
बेटियों के लिए क्यों किसी वरदान से कम नहीं डॉक्टर गणेश राख?
ये कहानी है पुणे के एक डॉक्टर गणेश राख की, जिनके काम से प्रभावित होकर मशहूर उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने भी उनकी जमकर तारीफ की है। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा- दो बेटियों का पिता होने के नाते, मैं दो बार जानता हूं कि जब आपके घर में एक फरिश्ता पैदा होता है तो कैसा लगता है। लेकिन ये डॉक्टर भी किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं। महिन्द्रा ने अपनी पोस्ट में डॉक्टर प्रशांत नायर की एक पोस्ट को शेयर किया है, जो बता रहे हैं कि कैसे पुणे के डॉक्टर गणेश राख बेटियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं।
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डॉक्टर का जवाब सुन क्यों भर आईं मजदूर की आंखें?
पोस्ट में डॉक्टर प्रशांत नायर कहते हैं- पुणे में एक दिहाड़ी मजदूर अपनी पत्नी की डिलिवरी के लिए उसे अस्पताल में भर्ती करा रहा था। पता चला कि डिलिवरी सिजेरियन से हुई है। हालांकि, अब तक वो ये नहीं जानता था कि इसके लिए कितना खर्च आएगा। उसे लगा कि डॉक्टर की फीस चुकाने के लिए शायद अब अपना घर गिरवी रखना पड़ेगा। उसने डॉक्टर से पूछा- बेटा है या बेटी। इस पर डॉक्टर गणेश राख ने कहा- आपको एक फरिश्ता (बेटी) हुई है। इस पर मजदूर ने पूछा- आपकी फीस कितनी है? तब डॉक्टर का जवाब सुन उसकी आंखे भर आईं।
आखिर ऐसा क्या कहा डॉक्टर ने?
डॉक्टर गणेश राख ने जवाब देते हुए कहा- जब फरिश्ते पैदा होते हैं, तो मैं कोई फीस नहीं लेता। इसके बाद वो मजदूर डॉक्टर के पैरों में गिर पड़ा और भावुक होते हुए बोला- आप तो धरती पर भगवान का रूप हैं। बता दें कि डॉक्टर राख 2007 यानी पिछले 18 सालों से ये काम कर रहे हैं। जब भी उनके अस्पताल में कोई बेटी जन्म लेती है तो वो उसके पेरेंट्स से कोई फीस या खर्च नहीं लेते हैं।
2000 से ज्यादा बेटियों का निशुल्क प्रसव करा चुके
डॉक्टर राख ने जब से अपना अस्पताल खोला है, तब से लेकर अब तक वो 2000 से भी ज्यादा बेटियों का निशुल्क प्रसव करा चुके हैं। उनका ये काम कहीं न कहीं भारत सरकार की 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना' को पूरी तरह सपोर्ट करता है। इस योजना का मकसद शिशु लिंगानुपात में कमी को रोकना और बेटियों को मजबूत बनाना है।
मेडिकल फील्ड को मिशन बनाने वाले डॉक्टर को सलाम
डॉक्टर गणेश राख के काम को देखते हुए सोशल मीडिया यूजर उनकी जमकर तारीफ कर रहे हैं। विनोद श्रीवास्तव नाम के एक यूजर ने पोस्ट पर कमेंट करते हुए लिखा-काश! मरे हुए मरीजों को बंधक बनाकर भी पैसे ऐंठने वाले डॉक्टर और अस्पताल मालिक इस डॉक्टर से कुछ सीख लें, तो दिन-ब-दिन मरती जा रही इंसानियत थोड़ी जिंदा हो जाए। इंसानियत की मिसाल कायम करने वाले इस डॉक्टर को सलाम! RJTechXocial नाम के एक यूजर ने लिखा- ऐसी कहानियां आशा जगाती हैं। मेडिकल फील्ड को एक मिशन बनाने के लिए डॉ. गणेश राख को सलाम। विवेक मिश्रा नाम के एक अन्य शख्स ने लिखा- यह केवल एक डॉक्टर का काम नहीं है, यह एक आंदोलन है, जो समाज की सोच बदलने की दिशा में एक बड़ी किरण है। बेटियां सच में 'परी' होती हैं और डॉ. गणेश राख जैसे लोग इस सच्चाई को दुनिया के सामने जीवित करते हैं। डॉक्टर साहब को नमन।
कौन हैं डॉक्टर गणेश राख?
डॉ. गणेश राख महाराष्ट्र के पुणे में स्थित हडपसर इलाके में एक अस्पताल चलाते हैं, जिसका एक अनूठा मिशन ज्यादा से ज्यादा बच्चियों को बचाना है। डॉ. राख ने जब से अस्पताल खोला है, तब से उन्होंने और उनकी टीम ने बेटियों की डिलिवरी पर कोई फीस नहीं ली है। एक इंटरव्यू में डॉक्टर राख कहते हैं- एक डॉक्टर के लिए सबसे बड़ी चुनौती मरीज की मृत्यु की खबर उसके परिवार को देना होता है। मैं भी उतना ही चिंतित हो जाता था, जब मुझे उन्हें यह बताना होता था कि लड़की पैदा हुई है। रिश्तेदारों के चेहरे मुरझा जाते थे, मां रोने लगती थी और कभी-कभी तो वे बिल चुकाने से भी इनकार कर देते थे। वे बहुत निराश होते थे। वहीं दूसरी ओर, लड़के के जन्म का स्वागत खुशी और मिठाइयों के साथ किया जाता था। तभी मैंने फैसला कर लिया कि अगर हमारे अस्पताल में लड़की पैदा हुई तो मैं उसकी फीस माफ कर दूंगा। जैसे लड़के के जन्म का स्वागत किया जाता है, वैसे ही हम लड़की के पैदा होने पर केक काटने, मिठाइयां बांटने का जश्न मनाने लगे।
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