
Malegaon Blast Case Judgment: 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम धमाके ने देश को झकझोर कर रख दिया था। इस धमाके में 6 लोगों की मौत और सौ से ज़्यादा लोगों के घायल होने के बाद मामला आतंकवाद से जुड़ा बताया गया। अब 17 साल बाद, मुंबई की एक विशेष NIA कोर्ट आज इस केस में फैसला सुनाने जा रही है।
मालेगांव ब्लास्ट केस में अदालत के सामने 10,800 दस्तावेज़ी सबूत, 323 गवाहों की गवाही, और 1300+ पेज की लिखित बहस पेश की गई। ये भारत के सबसे लंबे और विवादास्पद मुकदमों में से एक बन गया।
ATS से NIA तक की जर्नी पहले जांच की कमान महाराष्ट्र ATS के पास थी, जिन्होंने इस केस को ‘भगवा आतंकवाद’ से जोड़कर सनसनी फैलाई। बाद में 2011 में जांच NIA को सौंपी गई। ATS की जांच पर सवाल उठे और कई आरोपियों ने आरोप लगाए कि उनसे जबरन कबूलनामे लिए गए।
इस केस में दो प्रमुख चेहरे उभरकर सामने आए: साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, जो अब भोपाल से BJP सांसद हैं, और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित, एक सैन्य अधिकारी। दोनों पर धमाके की साजिश रचने, संगठनात्मक मदद और योजना में शामिल होने के गंभीर आरोप लगे। दोनों ने आरोपों से साफ इनकार किया।
धमाके में इस्तेमाल मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा के नाम पर थी। इसे सबसे अहम सबूत बताया गया। लेकिन बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि यह केवल नाम का उपयोग था, धमाके में उनकी कोई संलिप्तता नहीं थी। क्या ये अदालत को मान्य होगा?
जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, इस केस को हिंदू आतंकवाद बनाम राजनीतिक षड्यंत्र के नजरिए से देखा जाने लगा। कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने आए। कोर्ट का फैसला केवल कानूनी नहीं, राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से भी निर्णायक होगा।
सभी 7 आरोपी ज़मानत पर बाहर हैं। आज अदालत का फैसला यह तय करेगा कि यह 17 साल की कानूनी यात्रा न्याय तक पहुंची या सिर्फ विवादों में उलझी रही।
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