"आतंकवाद कभी भगवा नहीं रहा": मालेगांव ब्लास्ट CM फडणवीस की चौंकाने वाली प्रतिक्रिया से सियाची भूचाल

Published : Jul 31, 2025, 01:59 PM IST
Devendra Fadnavis saffron terror statement

सार

Malegaon Blast Accused Acquitted: मालेगांव बम विस्फोट मामले में 17 साल बाद सभी आरोपी बरी। मुख्यमंत्री फडणवीस बोले-"आतंकवाद कभी भगवा नहीं रहा, न ही होगा!" उनके बयान से भगवा आतंकवाद पर विवाद फिर गहराया। कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी को किया बरी। 

Malegaon Blast 2008 Case Verdict:  29 सितंबर 2008, रमज़ान का महीना, मालेगांव का भीखू चौक—और अचानक एक भीषण विस्फोट से कांप उठता है शहर। 6 निर्दोष लोगों की मौत और 100 से ज्यादा घायल। भय, गुस्सा और दर्द का वो मंजर आज भी कई परिवारों के ज़हन में ज़िंदा है। और अब—17 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद जब फैसला आया, तो एक बार फिर से सवालों की आंधी उठी: क्या मालेगांव को न्याय मिला?

सिर्फ शक काफ़ी नहीं: अदालत ने सभी 7 आरोपी बरी किए

मुंबई की एनआईए विशेष अदालत ने सोमवार को मालेगांव ब्लास्ट केस में सभी सात आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में साफ़ कहा, “सिर्फ़ शक के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।” इस फैसले में जिन आरोपियों को राहत मिली, उनमें प्रमुख नाम थे-साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित और पांच अन्य। इन पर आतंकवादी षड्यंत्र रचने, विस्फोटक रखने और आतंकी गतिविधियों में संलिप्तता जैसे गंभीर आरोप थे। एनआईए की ओर से पेश किए गए 10,800 दस्तावेज़ी सबूत और 323 गवाहों की गवाही कोर्ट में पर्याप्त नहीं मानी गई।

मुख्यमंत्री फडणवीस की प्रतिक्रिया: ‘आतंकवाद कभी भगवा नहीं रहा’ 

फैसले के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने X (पूर्व ट्विटर) पर एक पंक्ति में बड़ा बयान दिया-"आतंकवाद कभी भगवा नहीं रहा, न ही कभी होगा!" इस एक वाक्य ने राजनीति में फिर उबाल ला दिया है। विपक्ष इसे भगवा आतंकवाद के मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश बता रहा है, जबकि भाजपा समर्थकों के अनुसार यह हिंदू धर्म को कलंकित करने की साजिशों की हार है।

क्या अब भगवा आतंकवाद एक ‘राजनीतिक कल्पना’ थी? 

मालेगांव ब्लास्ट केस को लेकर लंबे समय से "भगवा आतंकवाद" की बहस होती रही है। अब जब सभी आरोपी बरी हो चुके हैं, तो इस सवाल ने फिर सिर उठाया है—क्या भगवा आतंकवाद सिर्फ एक नैरेटिव था, या इसके पीछे कोई सच्चाई थी जो सबूतों के अभाव में साबित नहीं हो सकी?

परिवारों की पीड़ा: "हमने सब कुछ खो दिया, लेकिन जवाब नहीं मिले" 

इस फैसले से जहां अभियुक्तों के लिए राहत आई है, वहीं पीड़ित परिवारों का दर्द आज भी ताज़ा है। एक मृतक के भाई ने कहा—“हमने अपने भाई को खोया, कोर्ट ने कहा कि दोषी कोई नहीं... फिर हमें जवाब कौन देगा?”

 17 साल, हजारों पन्नों की चार्जशीट, सैकड़ों गवाह, और अंत में-‘कोई दोषी नहीं!’

यह फैसला भारतीय न्यायपालिका के मानकों पर खरा उतरता है या कहीं कुछ छूट गया? क्या यह केस राजनीति की भेंट चढ़ गया? या सचमुच, न्याय ने सिर्फ सबूतों पर भरोसा किया?

मालेगांव केस खत्म, लेकिन सवाल बाकी हैं...

मालेगांव विस्फोट केस का कानूनी अध्याय भले ही बंद हो गया हो, लेकिन इसकी परछाइयाँ अब भी गूंज रही हैं। क्या इस फैसले से ‘भगवा आतंकवाद’ की परिभाषा हमेशा के लिए खत्म हो गई, या यह सिर्फ शुरुआत है एक नई बहस की?

 

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