राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के दो फाड़ होने के कयास लगाए जा रहे हैं। वैसे बीजेपी के लिए अजीत पवार का साफ्ट कार्नर जग जाहिर है। चार साल पहले भी अजीत पवार ने चाचा (शरद पवार) से बगावत की थी। पर बाद में अपने कदम पीछे खींच लिए थे।
मुम्बई। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के दो फाड़ होने के कयास लगाए जा रहे हैं। वैसे बीजेपी के लिए अजीत पवार का साफ्ट कार्नर जग जाहिर है। चार साल पहले भी अजीत पवार ने चाचा (शरद पवार) से बगावत की थी। पर बाद में अपने कदम पीछे खींच लिए थे। मौजूदा घटनाक्रम भी इसी तरफ इशारा कर रहे हैं। NCP छोड़ने की ख़बरों को लेकर महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता अजीत पवार ने मंगलवार को कहा कि मेरे बारे में फैली अफवाहों में कोई सच्चाई नहीं है। मैं एनसीपी के साथ हूं और पार्टी के साथ रहूंगा। मैंने किसी विधायक के हस्ताक्षर नहीं लिए हैं। अब सभी अफवाहें बंद होनी चाहिए।
शरद पवार ने दिया ये बयान
एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने मंगलवार को अजीत पवार को लेकर लगाई जा रही अटकलों को खारिज करते हुए कहा है कि किसी ने भी एनसीपी की बैठक नहीं बुलाई है। उधर, पार्टी नेता अनिल पाटिल ने मंगलवार को अजीत पवार से मुलाकात की। एक न्यूज एजेंसी से बातचीत के दौरान पाटिल ने कहा कि उन्होंने 2-3 दिन से चल रही इस न्यूज के बारे में चर्चा की। जो खबरों में चल रहा है, वैसी चर्चा कहीं पर नहीं हुई है। इसे रोकना चाहिए, क्योंकि दादा (अजीत पवार) और किसी और की आज तक कोई चर्चा नहीं हुई है। वैसे हम दादा के साथ हैं और आगे भी रहेंगे। अजीत दादा एनसीपी के साथ हैं।
चार साल पहले की घटना पर डालिए एक नजर
वर्ष 2019 विधानसभा चुनाव के बाद अजीत पवार ने एनसीपी से बगावत कर दी और फडणवीस के साथ सरकार बना ली थी। एक नाटकीय घटनाक्रम में 23 नवम्बर को सुबह—सुबह शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन हुआ। देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार ने सीएम और डिप्टी सीएम पद की शपथ भी ले ली थी। पर चाचा शरद पवार के दबाव के बाद अजीत ज्यादा देर तक अपने स्टैंड पर कायम नहीं रह सके थे और यह सरकार महज 80 घंटे तक ही अस्तित्व में रह पाई। उसके बाद दोनों नेताओं ने अपने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया था।
शरद पवार की मंजूरी के बिना नई राह में मुश्किलें
जिस तरह एकनाथ शिंदे ने एक झटके में शिवसेना के दो फाड़ कर दिए थे। एनसीपी की सियासत उससे जुदा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, अजीत खेमे के विधायकों का भी मत है कि शरद पवार की सहमति के बाद ही नई राह चुनी जाए। उनसे बिना अशीर्वाद लिए आगे की डगर विधायकों को आसान नहीं दिख रही है। उधर, अजीत पवार भी यह समझ रहे हैं कि यदि चाचा शरद पवार की बात नहीं मानी तो एक बार फिर वर्ष 2019 की तरह ऐलान करने के बाद भी बैकफुट पर आना पड़ सकता है। बीजेपी भी यही चाहती है कि इस तरह की शर्मिंदगी का दोबारा सामना न करना पड़े। चर्चा तो यहां तक थी कि अजीत पवार विधायकों को कॉल कर उनका मन टटोल रहे हैं।