
मुंबई। पुणे में 1997 के बहुचर्चित डकैती और हत्याकांड में 2021 में मौत की सजा पाए एक दोषी को बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को बरी कर सबको चौंका दिया। अदालत ने तत्काल प्रभाव से आरोपी भागवत काले को रिहा करने का निर्देश दिया है। अब सवाल ये उठ रहा है कि आखिर फिर 27 साल पहले हुए मर्डर का असली गुनाहगार कौन है?
भागवत काले उस समय एक निर्माण स्थल पर चौकीदार के रूप में काम करता था। इस मामले में पीड़ितों में एक ही परिवार के चार सदस्य शामिल थे, जिनमें दो मासूम बच्चे भी थे। इस क्रूर अपराध का मकसद लगभग 49 लाख रुपये की नकदी और चांदी के आभूषणों की लूट थी।
राज्य सरकार ने हाई कोर्ट से मृत्युदंड की पुष्टि की मांग की थी, लेकिन अदालत ने कहा कि मौत की सजा का कोई ठोस आधार नहीं है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने फैसले में कहा, "मृत्युदंड की पुष्टि का कोई मामला नहीं बनता है, इसलिए इस सजा को खारिज किया जाता है।"
15-16 मई 1997 की रात रमेश पाटिल (55), विजया पाटिल (47), मंजूनाथ पाटिल (10) और एक अन्य की उनके किराए के घर में हत्या कर दी गई थी। इस मामले में आरोपी भागवत काले की पत्नी गीताबाई उस घर में घरेलू सहायिका के तौर पर काम करती थी। 2004 में पुणे सत्र न्यायालय ने गीताबाई और एक अन्य आरोपी साहेबराव उर्फ नवनाथ काले को दोषी ठहराया था। गीताबाई को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, जबकि नवनाथ को मौत की सजा दी गई थी। हालांकि,अब भागवत काले को हाई कोर्ट ने निर्दोष मानते हुए बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि मामले में दिए गए सबूतों के आधार पर दोष सिद्ध नहीं होता।
राज्य ने नवंबर 2004 में तत्कालीन न्यायमूर्ति वी जी पलशिकर और अनूप मोहता की उच्च न्यायालय की खंडपीठ के फैसले का हवाला दिया, जिसमें नवनाथ की मौत की सजा को कम करते हुए उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया था और कहा गया था कि भागवत पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता क्योंकि वह फरार था। इस मामले में पुलिस और अभियोजन पक्ष ने कहा है कि वे आगे की कार्रवाई के लिए विचार कर रहे हैं। वहीं, मृतकों के परिवार ने न्याय की उम्मीद जताई है।
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