इस कैंसर से हर साल नहीं होंगी 6 लाख मौतें, मजदूर के बेटे ने बना दी दुनिया की ऐसी पहली वैक्सीन

ब्रिटेन में भारतीय मूल के पंजाब के रहने वाले डॉक्टर टोनी ढिल्लों ने दिन-रात मेहनत करके दुनिया की पहली आंत कैंसर वाली वैक्सीन बनाई है। वह पूरे विश्व के एक मात्र ऐसे डॉक्टर बन गए हैं जिन्होंने कैंसर का यह टीका ईजाद किया है।

Arvind Raghuwanshi | Published : Mar 18, 2024 6:07 AM IST

जालंधर. भारत के नाम एक और कामयाबी हासिल की है, यह कमाल ब्रिटेन में भारतीय मूल के पंजाब के रहने वाले डॉक्टर टोनी ढिल्लों ने किया है। जिन्होंने दिनरात मेहनत करके दुनिया की पहली आंत कैंसर वाली वैक्सीन बनाई है। उनकी यह सफलता इसलिए खास है कि उन्होंने यह सब अकेले ही अपनी दम पर किया है। क्योंकि उन्हें किसी सीनियर डॉक्टर ने इसकी परमिशन नहीं दी थी।

जानिए कब से बाजार में मिलेगा कैंसर का यह टीका

इतना ही नहीं लंदन के मेडिकल कॉलेज ने टोनी ढिल्लों के आतों वाले टीके की रिसर्च को नकार दिया था। लेकिन वह निराश नहीं हुए और इसमें जुट गए, जिसका परिणाम आज यह है कि वह पूरे विश्व के एक मात्र ऐसे डॉक्टर बन गए हैं जिन्होंने कैंसर का यह टीका ईजाद किया है। वह आंत के कैंसर की इस वैक्सीन को विकसित करने पर चार साल से काम कर रहे थे। अब इस वैक्सीन का ट्रायल भी हो गया है। उनकी इस वैक्सीन का पहला चरण जनवरी में कंपलीट हो गया है। तीसरा और आखिरी चरण साल के अंत तक हो जाएगा। वहीं दो साल में यह टीका बाजार में मिलने लगेगा।

इस बीमार से हर साल 6 लाख लोगों की हो जाती है मौत

टोनी उन मरीजों के लिए एक उम्मीद की किरण बनकर सामने आए हैं, जो आंत के कैंसर की समस्या से जूझ रहे हैं। बता दें कि दुनियाभर में आंत के कैंसर के 12 लाख लाख मामले हर साल सामने आते हैं। जिसमें आधे से ज्यादा मरीजों की तो मौत हो जाती है। मृत्यु दर के हिसाब से यह तीसरा सबसे खतरनाक कैंसर है।

डॉक्टर टोनी के माता-पिता जालंधर में करते थे मजदूरी

बता दें कि डॉक्टर टोनी ढिल्लो दुनिया के जाने माने डॉक्टर हैं। वह रॉयल सरे एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट में ऑन्कोलॉजिस्ट हैं और सीनियर लेक्चरर भी हैं। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में प्रोफेसर टिम प्राइस के साथ इस वैक्सीन पर काम किया है। 53 साल के डॉ. ढिल्लों के दादा पंजाब के जालंधर जिले से 1950 के दशक में ब्रिटेन आए थे और यहां एक ब्राइलक्रीम फैक्ट्री में काम करते थे। टोनी का कहना है कि मेरे माता-पिता कभी जालंधर में मजदूरी करते थे। मैं आम आदमी का दर्द समझता हूं। लेकिन लंदन आकर उन्होंने मेहनत की और मुझे पढ़ाया-लिखाया। जिसकी बदौलत यह वैक्सीन बना पाया।

 

Share this article
click me!