
बाड़मेर. हर कोई चाहता है कि उसका बेटा डॉक्टर बने…यहां तक की कई मंत्री और IAS अफसरों के बच्चे भी नीट का एंट्रेंस देते हैं, लेकिन क्लियर नहीं कर पाते। राजस्थान के सीमावर्ती जिले बाड़मेर के छोटे से कस्बे धोरीमना के प्रिंस चौधरी ने वो कमाल कर दिखाया है। प्रिंस ने AIIMS, दिल्ली में प्रवेश पाकर इतिहास रच दिया है। उन्होंने 2018 में NEET परीक्षा में 5वीं रैंक हासिल की और यह साबित कर दिया कि भाषा या संसाधन कभी भी सफलता की राह में बाधा नहीं बन सकते।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा प्रिंस के पिता रामाराम गांव में एक मेडिकल स्टोर चलाते हैं, और उनकी मां गृहिणी हैं। सीमित संसाधनों के बावजूद, प्रिंस ने बचपन से ही पढ़ाई में अपनी लगन दिखाई। उन्होंने 10वीं कक्षा में 94.17% और 12वीं में 93.6% अंक हासिल किए। इसके बाद, उन्होंने कोटा में कोचिंग ली, जहाँ उन्होंने प्रतिदिन 6 घंटे पढ़ाई की। उनकी तैयारी का मूल मंत्र था नोट्स बनाना, रिवीजन करना और हर दिन तय किए गए पाठ्यक्रम को पूरा करना।
NEET जैसी कठिन परीक्षा में सफलता पाना अपने आप में बड़ी बात है। लेकिन हिंदी माध्यम के छात्र प्रिंस ने 720 में से 686 अंक हासिल करके 5वीं रैंक प्राप्त की। यह उनके अनुशासन, समर्पण और नियमित अध्ययन का परिणाम था। उनकी कहानी उन लाखों छात्रों के लिए प्रेरणा है जो सोचते हैं कि सीमित संसाधनों में बड़ी उपलब्धि पाना मुश्किल है।
प्रिंस का सपना AIIMS, दिल्ली से MBBS करने का था। उन्होंने अपनी मेहनत और सफलता से इस सपने को पूरा किया। उनकी कहानी यह संदेश देती है कि कठिन परिस्थितियों में भी सही दिशा में मेहनत की जाए तो सफलता निश्चित होती है। सीमित संसाधनों और ग्रामीण पृष्ठभूमि से होते हुए भी, प्रिंस ने यह साबित किया कि लगन और परिश्रम से हर चुनौती को पार किया जा सकता है।
प्रिंस चौधरी की कहानी उन सभी छात्रों के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि कड़ी मेहनत, दृढ़ संकल्प और समर्पण से कुछ भी संभव है।
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