परिवार खुद भूखा रहा लेकिन बेटे को बना दिया IITian, पढ़ें उस बेटे की कहानी जो बनेगा गांव का पहला इंजीनियर

हाल में ही JEE mains 2023 के रिजल्ट सामने आए है। इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे गांव के लड़के ने अपने परिवार की विषम परिस्थितियों के बावजूद शानदार अंक हासिल करते हुए अपने सपने के एक कदम और आगे बढ़ गया है। परिवार में खुशी का माहौल है।

Sanjay Chaturvedi | Published : Jun 22, 2023 7:00 AM IST

कोटा (kota News). हाल ही में जेईई मेंस का परिणाम जारी हुआ है। इस रिजल्ट में राजस्थान के कोटा जिले में तैयारी करने वाले कृष्णकांत ने 91 परसेंटाइल हासिल की है। पूरे इंडिया में उनकी रैंक 924 वीं रैंक है। जबकि ओबीसी कैटेगरी में उनका पूरे देश में 154 वा स्थान है। इस एग्जाम में पास होने के बाद अब कृष्णकांत कानपुर आईआईटी में कंप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग करेंगे। यह रिजल्ट जारी होने के बाद जहां कृष्णकांत के परिवार में तो खुशी का माहौल है ही। लेकिन मध्यप्रदेश में पूरा गांव भी इसका जश्न मना रहा है क्योंकि कृष्णकांत अपने गांव का पहला इंजीनियर होगा। ताज्जुब की बात तो यह है कि कृष्णकांत ने यह सफलता उन हालातों में हासिल की है जहां एक स्टूडेंट का जीवन यापन कर पाना है मुश्किल हो जाता है।

परिवार ने भूखा रहकर भी अपने बेटे की स्टडी में नहीं की कोई कमी

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कृष्णकांत के पिता कमलेश साहू बताते हैं कि मैं खुद पढ़ नहीं पाया। लेकिन मैंने मेरे बेटे को पढ़ने से कभी भी नहीं रोका। उसने आज मेरा सीना चौड़ा कर दिया है। आपको बता दें कि कृष्णकांत के पिता कमलेश दिहाड़ी मजदूरी का काम करते हैं। परिवार का गांव में जो घर है उस पर छत भी पक्की नहीं है। हालांकि उनके पास गांव में जमीन है लेकिन उस पर फसल भी ठीक ढंग से नहीं होती। ऐसे में परिवार का घर चलाना भी मुश्किल होता है। लेकिन कमलेश ने अपने बेटे कृष्णकांत को पढ़ाने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ी।

जेईई की तैयारी के लिए कोटा पढ़ने गया कृष्णकांत

कृष्णकांत बताते हैं कि उनके पिता कमलेश ने हमेशा से ही काफी ज्यादा सपोर्ट किया। कृष्णकांत पढ़ाई में होशियार था तो गांव की एक सरकारी ने उन्हें दसवीं तक तो फ्री पढ़ाई करवा दी लेकिन इसके बाद आगे पढ़ाई करने के लिए कृष्णकांत को कोटा जाना था। ऐसे में पिता कमलेश उसे अपने साथ कोटा लेकर चले गए। और वहां उसका दाखिला एक प्राइवेट इंस्टिट्यूट में करवा दिया इंस्टिट्यूट वालों ने भी उसे हर संभव मदद की। कृष्णकांत बताते हैं कि दसवीं क्लास पास करने के बाद जब वह 11वीं कक्षा में आए उस दौरान कोरोना महामारी आ चुकी थी लेकिन परिवार इतना ज्यादा सक्षम नहीं था कि उसकी पढ़ाई के लिए मोबाइल ले सके। ऐसे में उन्हीं के एक रिश्तेदार ने कृष्णकांत को मोबाइल दिलवा कर दिया।

बेटे की स्टडी में बाधा ना बने तो छुपाई पिता के एक्सीडेंट की बात

बीते साल कृष्णकांत के पिता कमलेश का एक्सीडेंट हो गया। लेकिन कमलेश ने यह बात अपने बेटे को नहीं बताई क्योंकि यदि बेटे को पता चलता तो उसकी पढ़ाई डिस्टर्ब होती। कृष्णकांत बताते हैं कि उन्होंने रोज करीब 10 से 12 घंटे पढ़ाई की। जिसके बाद उनका इतना अच्छा रिजल्ट आया है। रिलैक्स फील करने के लिए कृष्णकांत अपनी मां से बात कर लेता था।

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