
झालावाड़, शुक्रवार सुबह झालावाड़ के पिपलोदी गांव की सरकारी स्कूल में जो हादसा हुआ, उसने पूरे गांव को गमगीन कर दिया। 7 मासूम बच्चों की मौत और दर्जनों घायल से हर चेहरा दुख में डूबा है। लेकिन इसी अंधेरे में दो चमत्कारिक कहानियां हैं, जिन्होंने सभी को हैरान कर दिया। आइए जानते हैं कैसे एक पेन ने एक बच्चे को मौत से बचा लिया।
कपिल रोज की तरह सुबह स्कूल पहुंचा था, लेकिन वो अपना पेन घर पर भूल गया था। जैसे ही छत से कंकड़ गिरते देखे, उसने टीचर से घर जाकर पेन लाने की इजाज़त ली। घर स्कूल से बस कुछ कदम दूर है। कपिल ने बताया, "मैं पेन लेने निकला ही था कि पीछे से पूरी स्कूल की बिल्डिंग गिर गई। इतनी तेज आवाज आई कि मैं घबरा गया। धूल और चीत्कारों से सब कुछ डरावना हो गया था।"
बरखा, गांव की 7वीं क्लास की छात्रा, थोड़ी देर से स्कूल पहुंची थी। जैसे ही वह गेट के पास पहुंची, उसकी आंखों के सामने पूरी इमारत भरभराकर गिर गई। वह कांपते हुए बताती है, "अगर मैं 2 मिनट पहले स्कूल पहुंचती, तो शायद अब जिंदा नहीं होती।" बरखा की कहानी सुनकर गांव वालों की आंखें नम हो गईं।
शनिवार सुबह एक साथ 6 बच्चों का अंतिम संस्कार किया गया। कोई भी घर ऐसा नहीं जहां चूल्हा जला हो। गांववाले अब भी सदमे में हैं। कई लोग अस्पताल में घायल बच्चों के साथ हैं, बाकी पीड़ित परिवारों के पास। प्रशासन ने हादसे की जांच के आदेश तो दे दिए हैं, लेकिन सवाल उठ रहा है—अगर इमारत जर्जर थी, तो क्या पहले कोई कदम नहीं उठाया गया? क्या मासूम बच्चों की जान यूं ही चली जानी चाहिए थी?
इस दर्दनाक हादसे में कपिल और बरखा की जान बचना किसी चमत्कार से कम नहीं। गांव के लोग इन्हें "ईश्वर की कृपा" मान रहे हैं। इनकी कहानी हादसे में मारे गए बच्चों की याद दिलाकर आंखें नम कर देती है, लेकिन साथ ही ये भी बताती है कि किस्मत कभी-कभी कुछ मासूमों को बचा भी लेती है।
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