इस मदर्स डे पर जानिए अनोखी मां की कहानी, जो पाकिस्तान में जन्मीं...लेकिन भारत में की 2500 बच्चों की परवरिश
14 मई को पूरी दुनिया मदर्स डे (mothers day 2023) मना रही है। आज हाम आपको एक ऐसी मां के बारे में बताते हैं, जिसने बिना मां बाप के ढाई हजार बच्चों की परवरिश की है। 95 साल की बुजुर्ग फिलहाल राजस्थान के सीकर जिले में रहती है।
सीकर (राजस्थान). राजस्थान की एक मां ने 1 नही,2 नही बल्कि करीब ढाई हजार से ज्यादा बच्चों की परवरिश की है। अब 95 साल की बुजुर्ग अवस्था में भी वह यह परवरिश करने का काम कर रही है। हम बात कर रहे हैं राजस्थान के सीकर जिले के भादवासी गांव में स्थित कस्तूरबा सेवा संस्थान की सुमित्रा देवी की।
सुमित्रा देवी का जन्म साल 1928 में हुआ था। लेकिन इनके पैदा होने के 10 दिन बाद ही पिता की आकस्मिक मौत हो गई। ऐसे में सुमित्रा के नाना उसे अपने साथ पाकिस्तान के कराची ले गए। यहां सुमित्रा का बचपन बीता। इसी बीच देश में आजादी के लिए आंदोलन शुरू हो गए। इन आंदोलन में सुमित्रा के नाना भी जाया करते थे।
सुमित्रा भी कई बार अपने नाना के साथ चली जाया करती थी। वहां महात्मा गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा गरीब और जरूरतमंद बच्चों की मदद करते रहते। इन्हें देखकर सुमित्रा प्रभावित हुई। उसी दिन से सुमित्रा ने सोच लिया था कि चाहे कुछ भी हो तो वह भी ऐसा ही कुछ करेगी जिससे कि जरूरतमंद और बेसहारा बच्चो का भला हो सके।
15 साल की उम्र में शादी होने के बाद पति की नौकरी सीकर में लगी। ऐसे में सुमित्रा सीकर आ गई। यहां पहले तो उन्होंने बच्चों को निशुल्क पढ़ाने के लिए काम शुरू किया। और तीन दशक पहले कस्तूरबा सेवा संस्थान शुरू कर दिया। इसके बाद लगातार कस्तूरबा सेवा संस्थान में बच्चों की संख्या बढ़ती गई। यहां तक कि यहां पले बच्चे अब सरकारी नौकरियों में भी लग चुके हैं। इतना ही नहीं कस्तूरबा सेवा संस्थान में जो लड़कियां रहती थी। उनकी शादी भी सुमित्रा ने ही जन सहयोग से करवाई। अब जब भी गर्मी की छुट्टियां आती है तो वह लड़कियां यहां आकर अपने पीहर की तरह ही रहती है
2007 से पहले कस्तूरबा सेवा संस्थान को किसी भी तरह की कोई मदद नहीं मिलती थी। सुमित्रा अपनी पेंशन के पैसे से ही इन बच्चों का पालन पोषण करती थी। साल 2007 के बाद सरकारी मदद मिलना भी शुरू हो चुकी है। साथ ही अब कस्तूरबा सेवा संस्थान में कई लोगों का स्टाफ भी है। जो पढ़ाने से लेकर खाना बनाने सहित तमाम काम करते हैं। सुमित्रा बताती है कि शुरू करने के बाद अब तक कस्तूरबा सेवा संस्थान में करीब ढाई हजार से ज्यादा बच्चे रह चुके हैं।