राजस्थान में कांग्रेस की सरकार चलाते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को चार साल बीत गए। लेकिन हर समय सीएम की कुर्सी के दावेदार माने जाने वाले सचिन पायलट की लिए अंतिम वर्ष भी कुछ हाथ नहीं लगा। अब आखिरी साल के कार्यकाल में पायलट को पार्टी से बड़ी उम्मीद है।
जयपुर. आखिरकार राजस्थान में सरकार ने 4 साल पूरे भी कर दिए। सरकार ने इस बार अपने आखिरी साल के कार्यकाल में कई बड़ी घोषणा भी कर दी है। लेकिन सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के बीच अब तक विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। सचिन पायलट और अशोक गहलोत खेमों के बीच बयानबाजी का दौर एक बार फिर शुरू हो चुका है। कभी कोई किसी कोई किसी को पेपर लीक मामले में घेरता है तो कभी कोई एक दूसरे पर सरकार गिराने का आरोप लगाता है।
फिर इस वजह से आमने-सामने गहलोत और पायलट
25 सितंबर को तत्कालीन राजस्थान प्रभारी अजय माकन के सामने हुए सियासी ड्रामे के बाद अब करीब 5 महीने बाद प्रदेश के मुख्य सचेतक महेश जोशी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। इस्तीफे के बाद राजस्थान में एक बार फिर पॉलिटिक्स शुरू हो चुकी है। कांग्रेस पार्टी के दोनों गुटों के नेता एक-दूसरे पर बोलने लगे हैं हालांकि अभी तक पार्टी ने यह तय नहीं किया है कि आखिर मुख्य सचेतक आखिर बनाया किसे जाएगा। आखिरकार राजस्थान में अब मुख्य सचेतक पद को लेकर भी विवाद शुरू होना माना जा रहा है। सचिन पायलट गुट चाहता है कि उनके नेता हो मुख्य सचेतक बनाया जाए। लेकिन सीएम अशोक गहलोत अपने गुट के नेता को भी यह जिम्मेदारी देना चाहते हैं।
कांग्रेस अधिवेशन से पायलट को बड़ी उम्मीद
अभी राजनीतिक जानकारों की माने तो मुख्य सचेतक के पद पर आखिरकार बैठेगा कौन इसका फैसला सीएम अशोक गहलोत ही करेंगे। हालांकि आलाकमान सचिन पायलट से ही इस पर अपनी राय ले सकता है। सचिन पायलट से भले ही आलाकमान राय क्यों न ले लेकिन चेहरे की इस बार भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की। क्योंकि राजस्थान में जब जब इस तरह के फैसले की कोई बारी आई तो उसमें सचिन पायलट खेमे को निराशा हाथ लगी। वहीं अगले कुछ दिनों में कांग्रेस का रायपुर में अधिवेशन शुरू होने वाला है। ऐसे में अब राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि सचिन पायलट अपनी भूमिका को लेकर इस अधिवेशन से पहले बात नहीं करते हैं तो उनका मामला इस पूरे साल के लिए ठंडे बस्ते में जा सकता है। बरहाल अब देखना होगा कि सचिन पायलट आखिरकार अपनी भूमिका तय करवाने के लिए क्या करते हैं।