
Rajasthan News : भारत में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा को सबसे चुनौतीपूर्ण परीक्षा माना जाता है, जहां हर साल लाखों युवा IAS या IPS बनने का सपना लेकर मैदान में उतरते हैं। लेकिन इस कठिन परीक्षा को पार करने के लिए सिर्फ किताबें ही नहीं, बल्कि जुनून, समर्पण और आत्मविश्वास की जरूरत होती है। ऐसी ही मिसाल हैं महाराष्ट्र के शरण गोपीनाथ कांबले, जिनका जीवन संघर्ष से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
शरण कांबले का जन्म महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के छोटे से गांव तड़वले में 30 सितंबर 1993 को हुआ। उनके पिता गोपीनाथ कांबले और मां सुदामती खेतों में मजदूरी और सब्जी बेचकर घर चलाते थे। बचपन से ही आर्थिक तंगी ने शरण को किताबों से पहले जिम्मेदारियों से जोड़ा, लेकिन उन्होंने पढ़ाई को कभी बोझ नहीं बनने दिया।
गांव के सरकारी स्कूल से शिक्षा की शुरुआत करने वाले शरण को 11वीं और 12वीं की पढ़ाई के लिए हर दिन 12 किलोमीटर का सफर करना पड़ता था। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और सांगली के वालचंद कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से बी.टेक की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बेंगलुरु से पोस्ट ग्रेजुएशन किया।
जहां आमतौर पर युवा उच्च शिक्षा के बाद हाई-पैकेज जॉब चुनते हैं, वहीं शरण ने 20 लाख रुपये सालाना के ऑफर को ठुकरा दिया और यूपीएससी की तैयारी में जुट गए। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद महाराष्ट्र सरकार की छात्रवृत्ति से मिली मदद ने उन्हें दिल्ली में पढ़ाई के दौरान सहारा दिया। लगातार प्रयासों से उन्होंने 2019 में CAPF में AIR 8, 2020 में UPSC में रैंक 542 और अंततः 2021 में रैंक 127 हासिल की। उन्हें IFS सेवा मिल रही थी, लेकिन उन्होंने आईपीएस को चुना। वे राजस्थान कैडर में IPS है।
शरण की यह यात्रा दिखाती है कि जब इरादे बुलंद हों तो हालात कोई मायने नहीं रखते। उनका जीवन उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है जो कठिन परिस्थितियों में भी अपने सपनों की उड़ान भरना चाहते हैं। बस ईमानदारी से मेहनत करें तो सफलता एक दिन जरूर मिलेगी।
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