पहली बार इस छोटे से कस्बे में बना था तिरंगा, आजादी के बाद लाल किले से फहराया था

आजादी के बाद लाल किले पर फहराया गया पहला तिरंगा राजस्थान के दौसा शहर में बना था। दौसा खादी समिति के कार्यालय में आज भी तिरंगे का कपड़ा बुना जाता है, जो देश भर में सम्मान के साथ फहराया जाता है।

दौसा. आज राजस्थान से हैं तो आज आपको भी राजस्थानी होने पर गर्व महसूस होगा। इसका कारण बहुत ही खास है। दरअसल आज से 78 साल पहले जब आजादी मिली थी देश को तो उस समय दिल्ली से राजस्थान के दौसा शहर के लिए एक मैसेज आया था। इस मैसेज को पूरा करने के बाद दौसा शहर को पूरा देश जानने लगा था। दरअसल आजाद भारत में पहली बार लाल किले पर जो तिरंगा लहराया गया था वह दौसा शहर के एक छोटे से कस्बे में बना था। उस समय जो शुरुआत हुई वह आज तक जारी है और आगे भी जारी रहने की उम्मीद है।

जवाहर लाल नेहरू से है इसका कनेक्शन

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दरअसल दौसा जिले के बनेठा, जसोता कस्बे में दौसा खादी समिति का कार्यालय है। यह आजादी से पहले का है और यहीं पर सबसे पहले तिरंगे की बुनाई हुई थी। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले पर जो तिरंगा फहराया था उसका ऑर्डर आजादी से पहले ही दे दिया गया था। इसे बुनने और उसके बाद दिल्ली तक पहुंचाने वाले लोग अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके वंशज अब इस काम को संभाल रहे हैं।

दौसा के अलावा महाराष्ट्र और कर्नाटक बनता यह खास कपड़ा

खादी समिति दौसा के मंत्री अनिल कुमार शर्मा का कहना है कि अब देश में सिर्फ तीन जगहें ऐसी हैं जहां पर तिरंगे का कपड़ा बनाया जाता हैं। दौसा के अलावा महाराष्ट्र और कर्नाटक के दो कस्बों में इसका निर्माण होता है। हम हर साल करीब दस हजार मीटर कपड़ा बनाने के बाद उसे प्रोसेसिंग के लिए मुंबई भेजते हैं। इस कपड़े से करीब पांच से छह हजार तक ध्वज बनकर तैयार होते हैं। हमारे लिए ही नहीं पूरे प्रदेश के लिए सम्मान की बात है कि देश - दुनिया में लहराया जाने वाला हर दूसरा या तिसरा तिरंगा हमारे शहर का है। खादी से बने तिरंगे अन्य कपड़ों से तिरंगे की तुलना में कहीं ज्यादा महंगे हैं। इनकी कीमत करीब एक हजार रूपए तक है।

 

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