
Rajasthan News: राजस्थान में कई अनोखी मान्यताएं प्रचलित हैं, लेकिन जोधपुर के पास स्थित डोली गांव की कहानी कुछ अलग ही है। इस गांव में पिछले 200 वर्षों से किसी भी मकान की ऊंचाई दो मंजिल से अधिक नहीं रखी गई है। इतना ही नहीं, यहां सर्राफा व्यापारी भी रात में रुकने से कतराते हैं। आइए जानते हैं, इस रहस्यमयी परंपरा के पीछे की वजह।
डोली गांव राजस्थान के जोधपुर जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर, बाड़मेर हाईवे के पास स्थित है। यह गांव अपने अनोखे नियमों के कारण चर्चा में रहता है। ग्रामीणों के अनुसार, करीब 200 साल पहले यहां हरिराम बैरागी महाराज तपस्या करने आए थे। उन्होंने एक लकड़ी के डंडे को जमीन में गाड़ा था, जो बाद में खेजड़ी के वृक्ष के रूप में विकसित हुआ। ग्रामीणों का मानना है कि इस वृक्ष के ऊपर कोई भी मकान नहीं बनना चाहिए, अन्यथा गांव पर संकट आ सकता है।
गांव के लोग मानते हैं कि अगर मकान की ऊंचाई खेजड़ी के वृक्ष से ज्यादा हो गई, तो गांव पर विपत्ति आ सकती है। यही कारण है कि आज तक यहां किसी भी घर की दूसरी मंजिल नहीं बनी। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और आज भी इसका पालन किया जाता है।
डोली गांव में एक और अनोखी मान्यता जुड़ी हुई है – कोई भी ज्वेलरी व्यापारी रात को यहां नहीं रुकता। इसके पीछे भी एक ऐतिहासिक कारण बताया जाता है।ग्रामीणों के अनुसार, संत हरिराम बैरागी महाराज ने यह आदेश दिया था कि गांव में कोई भी सर्राफा व्यापारी रात में न ठहरे। कहा जाता है कि जो भी व्यापारी यहां रात में रुका, उसे किसी न किसी परेशानी का सामना करना पड़ा। यही वजह है कि आज भी सर्राफा कारोबारी इस मान्यता का पालन करते हैं।
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डोली गांव में किसी भी तरह की कच्चे तेल की घाणी (कोल्हू) नहीं है। ग्रामीणों का मानना है कि अगर यहां घाणी चलाई गई, तो गांव पर संकट आ सकता है। इसलिए आज तक गांव में किसी ने घाणी नहीं चलाई।
गांव के लोगों का मानना है कि उनकी परंपरा और संत की कृपा से कोरोना महामारी के दौरान भी गांव में किसी तरह की आपदा नहीं आई। इस आस्था के कारण ग्रामीण आज भी अपने नियमों का पालन कर रहे हैं।
आज के समय में, जब युवा अपनी परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं, डोली गांव के युवा अपनी संस्कृति और मान्यताओं को संजोए हुए हैं। उनका मानना है कि इस परंपरा को मानने से गांव में खुशहाली बनी रहती है।
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