इस शहर में बनने जा रही है दुनिया की सबसे बड़ी बजरंग बली की मूर्ति, तेज भूकंप भी नहीं हिला सकेगा

राजस्थान के उदयपुर जिले में भगवान हनुमान की विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा स्थापित होने जा रही है। जिसकी ऊंचाई  151 फीट होगी। अभी महाराष्ट्र में 105 फीट, शिमला में 108 फीट, उड़ीसा में 108 फुट और आंध्र प्रदेश में भगवान हनुमान की 135 फीट ऊंची प्रतिमा है।

उदयपुर. राजस्थान में झीलों की नगरी नाम से मशहूर और वेनिस सिटी कहे जाने वाले राजस्थान के उदयपुर जिले की सुंदरता में जल्द ही चार चांद लगने वाले हैं। दरअसल यहां भगवान हनुमान की विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा स्थापित होने जा रही है। जिसकी ऊंचाई करीब 151 फीट होगी। इतना ही नहीं यह मूर्ति इतनी ज्यादा मजबूत होगी कि तेज भूकंप में भी उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा।

उदयपुर के शिशवी गांव में में स्थापित होगी हनुमाजी की प्रतिमा

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इस मूर्ति का निर्माण उदयपुर शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर कुराबड इलाके के शिशवी गांव में हो रहा है। आज इसका शिलान्यास हो रहा है। कार्यक्रम में उदयपुर के मूलनिवासी और असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया और उदयपुर राजघराने के लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हो रहे हैं। दरअसल यह मूर्ति पंचमुखी बालाजी विकास समिति की तरफ से बनवाई जा रही है।

पद्मश्री मूर्तिकार राम माथुर ने किया है इस मूर्ति का डिजाइन

जो एक पहाड़ीनुमा टीले पर बनेगी। कंस्ट्रक्शन करने वाले इंजीनियर का मानना है कि 15 किलोमीटर दूर से ही यह मूर्ति दिखना शुरू हो जाएगी। मूर्ति के पास ही सड़क से करीब 10 फीट ऊपर 2 मंजिला इमारत भी होगी जिसमें सत्संग सहित कई अन्य आयोजन भी किए जा सकेंगे। आपको बता दें कि इस मूर्ति का डिजाइन पद्मश्री मूर्तिकार राम माथुर ने किया है। जिन्होंने बीते दिनों गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति का डिजाइन किया था। मूर्ति का काम ट्रेवर्स इंफ्रा कंपनी कर रही है। हालांकि अभी तक यह नहीं बताया गया कि आखिरकार मूर्ति का काम कब तक पूरा होगा लेकिन इसमें करीब 1 से डेढ़ साल का समय लग सकता है।

अभी आंध्र प्रदेश में है हनुमान की 135 फीट ऊंची प्रतिमा

आपको बता दें कि इससे पहले महाराष्ट्र में 105 फीट, शिमला में 108 फीट, उड़ीसा में 108 फुट और आंध्र प्रदेश में भगवान हनुमान की 135 फीट ऊंची प्रतिमा है। इस मूर्ति में 3 लेयर होगी। जिनमें सबसे पहले तो लोहे के बड़े-बड़े खंभे और पोल इसके बाद फाइबरग्लास और फिर सीमेंट रेत और कंक्रीट होगा। हालांकि मंदिर का रास्ता अंदर से नहीं बल्कि बाहर सीढ़ियों से ही निकाला जाएगा क्योंकि मान्यता है कि इससे भगवान का अपमान होता है।

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